Monday, June 13, 2011

मित्रों के नाम

मित्रों के नाम
ईश मिश्र
सुन सुन कर गालिया तुम सब की
छोड़ दिया कविता को फेसबुक की
अब लिखता हूँ कलम से कविता कागज पर
लानत है फेसबुकी मित्रों की लानत पर
ऋतुराज की मुहिम में ताजपोशी की
शरीक हो गए अब तो कुमार नरेन्द्र भी
खुर्शीद के रंग-ढंग तो पहले से ही नहीं थे ठीक
अब तो साथ में शिक्षा भी हो गई शरीक
सुमन के हाल तब भी हैं थोड़ा ठीक
और-तो-और अमिताभ भी हैं इसमें शामिल
कवि का क्या टूट सकता किसी का भी दिल
ऐसे में हो गए हो सभी कविता के नाकाबिल
[ईमि/12.06.2011]

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