केदारनाथ सिंह की कविता
ईश मिश्र
कौन कहता है केदारजी हैं अभिजात वर्ग के कवि ?
पढ़ा नहीं होगा उसने आमजन की काशी की छवि
उनकी कविता क से सुनाती है ककहरा
टाट-पट्टी पर सिखाती है जमा-घटा;भाग-गुणा
भागती रेल करती बेचैन और व्याकुल
पहुँच जाती दौड़ कर माझी के पुल
रो देती है देख दंगे और मजहबी खून खराबा
उदास कर देता है इसे खाली घर करीम चाचा का
आह्लादित हो जाती है देख पहली बरसात
हरी-भरी कर देती है जो खेती-बाड़ी और घास
घबराती है नहीं देख बाढ़ के प्रलय का प्रकोप
छाए हों विपदा के बादल चाहे घटाटोप
हो कैसी भी भीषण विभीषिका
व्यक्त करती है आमजन की व्यथा और जिजीविषा
यह साहस और संकल्प है आमजन का जज्बा
अभिजात इस विपत्ति में टूट जाता कबका
समीक्षा होती है निष्पक्ष विवेचना
पूर्वाग्रह से विकृत हो जाती है आलोचना.
[22.06.2011]
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