Friday, June 24, 2011

आत्म परक

आत्म परक
ईश मिश्र
पैदा हो गया ब्राह्मण वंश में जन्म के संयोग से
होता था वहां सब कुछ पञ्चांग के योग से
मझुई के किनारे अवध के एक गाँव में
ढाख के वन और अमराइयों के छाँव में
वर्णाश्रमी सामंतवाद तब तक आबाद था
रश्म-ओ-रिवाज़ में जातिवाद जिंदाबाद था
पञ्चांग में जब जन्म के घड़ी पहर का हुआ आंकलन
भगवान के करीब पाए गए मेरे कुण्डली के लक्षण
आषाढ़ कृष्ण पक्ष की दशमी बीस सौ बारह सम्बत
साक्षात ईश रख दिया नाम था जो पञ्चांग सम्मत
सोचा होगा उन्होंने कुछ तो करेगा नाम सा काम
भूल हुई उनसे लेना यह मान
खुद ही जो ईश हो, लेगा क्यों किसी और ईश का नाम
खुश है वह इस नाम से हो गया जो है नहीं सन्नाम
परवाह नहीं उसको रामदेव की गाली दो या कह दो अंकल सैम
देते देते गालिआं भूतों को भगवानो की बारी आ गयी
देख कारनामे उसके अवतारों और पैगम्बरों की उसकी सामत आ गयी
ज्ञान की तलाश में करने लगा सावाल हर बात पर
बरबस ही ध्यान चला गया भगवानों की करामात पर
सोचा यही है अगर दुनिया की नैया का खेवनहार
डूब रहे हैं नाइन्शाफ़ी से क्यों इसके तमाम सवार ?
क्यों लेता है यह राजाओं के घर ही अवतार?
क्यों होते हैं दुनिया में इसके मालिक और ग़ुलाम?
क्यों मरते हैं मेहनतकश भूखे-नंगे-गुमनाम?
क्यों करवाता रक्त-पात धरकर अलग-अलग नाम
बांटे जो इन्शान को वह कैसा भगवान?
क्यों हो रहे हैं बेबस-बेघर मजदूर-आदिवासी किसान?
सबके-सब हैं लगभग इसके परम निष्ठावान
उड़ते हैं आसमान में पूंजीपति और दलाल
लूटते इसकी दुनिया, करते इन्सानियत को हलाल ?
धीरे धीरे हकीकत साफ़ होने लगी
भूतों की ही तरह भावानों के वजूद पर भी सुब्हा होने लगी
धूर्त दिखने लगे सब बाबा-स्वामी; योगी-भोगी
बना देते ये इन्सानो को तर्कहीन-मनोरोगी
भूतों को ललकारा था लड़कपन में
दे दिया चुनौती भगवान को किशोर होते-होते
आया न सामने भूत न ही आया भगवान
इनके वजूद को कल्पित लिया मैंने मान
भूत का भय किया खडा कुछ स्वार्थी कमीनो ने
गढ़ दिए भगवान चतुर चालाक इन्सानों ने
जब लगा  भूत-भगवानों को ललकारने
आ गए ओझा-सोखा; पंडित-पण्डे सामने
तर्क नहीं, चलाने लगे आस्था के  तीर
तर्कों ने मेंरे दिया जिन्हें चीर
चुप हो गए वे मन मार कर
छुप गए मंदिर में एक छात्र से हार कर
ख़त्म हो गया जब भूत-भगवान का भय
हो गया तबसे हर बात से निर्भय
२८.०६.२०११

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