Saturday, June 11, 2011

डर

डर
ईश मिश्र
बहुत डर लगता है मुझे, मैं जंगल रहता हूँ
आदिवासी नाम दर्ज है मेरा भारत के संविधान में
वनवासी कहते हैं मुझे कुछ सांस्कृतिक राष्ट्रवादी
दोनों की मिली-जुली कृपा से आंतंकित है सारी आबादी
मुझे बहुत डर लगाता है, मैं जंगल में रहता हूँ
लेकिन नहीं हैं बाघ-शेर-भेडिए मेरी भय के कारण
वे भी तो वनवासी हैं, नहीं करते घात अकारण
है यह तो वर्दीधारी, सभ्य इंशान का आचरण
मैं जंगल में रहता हूँ, बहुत डर लगता है मुझे
शेर-चीता भालू से नहीं वे भी तो वनवासी हैं
सुख-दुःख के अपने साथी हैं
मुझे डर लगता है लेने में उस शख्स का नाम
सुना है दीवारों के भी होते हैं कान
लेकिन कब तक डरता रहे आदिवासी-किसान
जंगल में रहता हूँ, हूँ तो फिर भी इंसान
डंके की चोट पर करता हूँ अब ऐलान
जिससे डरता हूँ उस शख्स का नाम है हिंदुस्तान
चलाता है गणतंत्र हो शाही बग्घी पर सवार
डराता है मुल्क को लगाकर तोप-टैंकों की ब़ाजार
अमरीका का पानी भरता करता गण पर अत्याचार
जल-जमीन का सौदा करता मारता इंसान
आपरेसन ग्रीन-हंट में मार दिए काफी नौजवान
मैंने भी अब लिया मन में ठान
डर-डर कर न जिऊंगा मरूंगा शान से
न डरूंगा मौत से न ही हिंदुस्तान से
[ईमि/11.06.2011

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