Monday, June 27, 2011

क्या दोस्तों!

क्या दोस्तों!
कह कर एक कविता में मन की अपनी फितरत
भांति-भांति की गालिओं को दे दी दावत
ऋतुराज ने दी रामदेव की बहुत ही भद्दी गाली
चार हाथ आगे उससे खुरशीद ने मोदी की गाली दे डाली
हो कर परेशान मैंने गालिआं लेना बंद कर दिया
पहले की भी वापस तुम्हारे हवाले कर दिया
निभाता रहूँगा तुम सबको पकाने का फ़र्ज़ गाली खाए बिना
ऋतुराज देता है गाली जैसे कविता पढ़े बिना
जब भी लेंगे शब्द पद्य का आकार
पकाने से दोस्तों को रुकूं किस प्रकार?

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