Monday, June 13, 2011

अवसाद

अवसाद
ईश मिश्र
सच है निर्वात की असम्भाव्यता की बात
पहले तुम थे अब न होने का अवसाद
जब भी करता हूँ ग़मे-जहाँ की बातें
सिनेमा की रील सी गुजरती हैं तुम्हारे साथ की यादें
थी दोस्ती की खुशी भी काफी सघन
कभी भी नहीं हुई कोई अनबन
चंद दिंनो का ही था अपना साथ
हो गया कुछ ज्यादा ही वियोग का अवसाद
[ईमि/13.06.2011]

No comments:

Post a Comment