Sunday, June 5, 2011

नैसर्गिक कवि

नैसर्गिक कवि
ईश मिश्र

नहीं हूँ मै कोई नैसर्गिक कवि
नहीं पेश कर सकता सत्य की कल्पित छवि
हक़ीकत वही जो दिखती आंखों को
लिख नही सकता अलौकिक बातों को
कैसे लिखूँ कल-कल; छल-छल बहती गंगा
रो रही हो जब वह देख गंदगी का नाच नंगा
नही है वियोग-संयोग मेरी कविता का कारण
बन नही सकती यह दिल बहलाऊ चारण
खोजेगी उमाशंकर की मुठ्भेड के कारण
लगायेगी नारे भूख के खिलाफ
मांगेगी कलिंगनगर का हिसाब
और नियाम्गिरि का इंशाफ
कैसे लिखूँ, अरी! वरुणा की शांत कछार
विलुप्त हो गई जब उसकी धार
मेरी कविता कविता नही नारा है
होशो-हवास में मैंने स्वीकारा है
[ईमि/05.06.11]

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