Monday, September 11, 2023

शिक्षा और ज्ञान 322 (सनातन)

 सनातन क्या है?

ईश मिश्र
सनातन का शाब्दिक अर्थ है शाश्वत यानि अनादि-अनंत। लेकिन दुनिया की हर वस्तु अनवरत परिवर्तन की स्थिति में रहती है, यदि शाश्वत कुछहै तो वह है परिवर्तन। इंसान भी हमेशा से नहीं रहा है और अभी तक के मानव विकास का ज्यादा हिस्सा आदिम अवस्था का है। हमारे आदिम पूर्वजों ने अपनी प्रजाति-विशिष्ट प्रवृत्ति, विवेक के इस्तेमाल से अपनी आजीविका का उत्पादन शुरूकर खुद को पशुकुल से अलग किया। आजीविका के उत्पादन के लिए हाथों को पहला औजार बनाया और फिर लकड़ी, पत्थर, धातुओं के इस्तेमाल से नए-नए औजारों का अन्वेषण-निर्माण करते पाषाण युग से साइबर युग तक पहुंच गए। सबसे लंबी अवधि की आदिम अवस्था रही, लाखों साल। मानव सभ्यता का इतिहास तो कुछ हजारों साल ही पुराना है अवस्था प्राकृतिक आपदाओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए, लंबे समय तक वनमानुष अवस्था के बाद जब मनुष्य समूहों में रहने लगे तथा संकेतों और ध्वनियों से न्यूनतम पारस्परिक संवाद करने लगे। भाषा का अन्वेषण एक अति क्रांतिकारी अन्वेषण था तथा शिकारी अवस्था के युग में तीर धनुष का अन्वेषण उतना ही क्रांतिकारी था, जितना आज के युग में साइबर स्पेस का। इसके विस्तार में जाने का अभी समय नहीं है, इसके लिए मैं नीचे एक लिंक शेयर करता हूं जिसमें पद्य में आदिम युग का वर्णन है। मैंने 2011 में मजदूरों और छात्रों के लिए पद्य में ऐतिहासिक भौतिकवाद पर एक पुस्तिका की योजना बनाया, जिसका एक खंड (आदिम साम्यवादी उत्पादन पद्धति) पूरा कर लिया था, चार ही रह गए थे, तब से बैठ नहीं पाया पता नहीं फिर कभी उसे पूरा करने बैठूंगा कि नहीं। कहने का मतलब हमेशा से कुछ नहीं रहा है न हमेशा कुछ रहेगा। प्रकृति का नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है। कहने का मतलब परिवर्तन के सिवा न कुछ अनादि है न कुछ अनंत, अर्थात केवल परिवर्तन ही शाश्वत है यानि परिवर्तन ही सनातन है।

जब इंसान ही हमेशा से नहीं रहा है, कुछ लाख साल पहले ही विकसित हुआ तथा सभ्यता कुछ हजार साल पहले। तो धर्म की बात ही क्या? मानव इतिहास के लिहाज़ से यह परिघटना तो कल की बात है। यानि मनुष्य की परिवर्तन की जिज्ञासा ही सनातन है। नया ज्ञान हासिल करक् पुरातन को खारिजकर नूतन के निर्माण की अनवरत प्रक्रिया ही सनातन है। यह प्रक्रिया हर युग में नए संघर्ष को जन्म देती है। यह संघर्ष ही सनातन है। परिवर्तन-केंद्रित मानव सभ्यता के विकास के क्रम में नए ज्ञान के आधार पर नए सत्य के अन्वेषण के संघर्ष ही सनातन हैं। इस क्रम में वेद, बाइबिल, कुरान जैसी पवित्र माने जाने किताबें ही नहीं ईश्वर का अस्तित्व भी ख़ारिज हो जाता है। जैसा कि लोकायत, जैन,बौद्ध, सांख्य जैसे दर्शनों ने किया। या विभिन्न देश-कालों में चार्वाक, सुकरात, कबीर, रैदास, नानक, मार्क्स, पेरियार और भगत सिंह आदि लोगों ने ने किया। यूरोप के नव जागरण और प्रबोधन क्रांतियों ने तथा भारत में कबीर-नानक तथा भक्ति आंदोलनों ने जन्म या अन्य आधारों पर मनुष्य-मनुष्य में भेद-भाव की ल्यवस्थाओं को खारिज कर नूतन का निर्माण किया चाहे पुरातन के पक्ष में कितने ही धर्मशास्त्रीय प्रमाण हों। यानि सत्य और न्याय के संघर्ष की प्रक्रियाओं की निरंतरता ही सनातन है। धर्मांधता का भजन सनातन विरोधी है। पुरातन के विरुद्ध नूतन के निर्माण की परिवर्तनकामी प्रक्रिया ही सनातन है, बाकी पाखंड। जय सनातन। आदिम समाज में विकास क्रम के लिए नीचे कमेंट बॉक्स में लिंक देखें।

3 comments:

  1. सुन्दर, सत्य और स्पष्ट विश्लेषण है। "मनुष्य की परिवर्तन की जिज्ञासा ही सनातन है"। कायल हूं सर इस लाइन का।
    लेख के लिए बधाई।
    जय प्रकाश मंडल।

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