Thursday, September 7, 2023

मैं तो इस कविता के लिए नारे लगा सकता हूं कि

 Vishnu Nagar की एक उत्कृष्ट कविता पर तुकबंदी में कमेंट --


मैं तो इस कविता के लिए नारे लगा सकता हूं कि
अच्छी कविता कैसी हो हंसने की तरह रोने जैसी हो
प्रोफेसनल नारेबाज होने के नाते यही कर सकता हूं
अन्याय के विरुद्ध न्याय के लिए नारे लगा सकता हूं
एक बार एक अभूतपूर्व भूतपूर्व क्रांतिकारी ने पूछा था
कि कब तक करता रहूंगा इसी तरह की नारेबाजी
जब तक अपने अपने अपने हिस्से के नारे सब नहीं लगाते--
पद-प्रतिष्ठा के लिए नारे बेच चुके अभूतपूर्वों और भूतपूर्वों समेत।

पहले वे क्रांतिकारी थे जब बुद्धिजीवियों में मार्क्सवाद का फैशन था
फिर वे भूतपूर्व हो गए जब फैशन चला भूतपूर्व होने का।

वे अभूतपूर्व रूप से नए फैशनों के शौकीन है
नूतन के लिए पुरातन का त्याग नियम है द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का
जब नया फैशन चला भूतपूर्व होने का, बर्लिन की दीवार के ढहने के बाद
उन्होंने उतार फेंका चोला मार्क्सवाद का और भूतपूर्व हो गए।
पहले वे ककहरे में पढ़ाते थे क से होता है कम्युनिस्ट
परिवर्तन प्रकृति का नियम है और वे अपवाद नहीं बनना चाहते
करते हुए प्रकृति के नियम का पालन पढ़ाने लगे क से कांग्रेस
जब चढ़े ऊंचे पद पर पुराने मनमोहक निजाम में
एक और नियम है द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का
अनवरत क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन परिपक्व होकर
तब्दील हो जाता है गुणात्मक क्रांतिकारी परिवर्तन में
क से ककहरा पढ़ाना पुराने भारत की रिवाज था
नए भारत में वे अब पढ़ाने लगे म से ममहरा।

कलम ने आवारगी में भूमिका में टेक्स्ट को नजरअंदाज कर दिया
मैं द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के नियमों को धता बताते हुए
क्रमिक और क्रांतिकारी परिवर्तनों को नकारते हुए
अब भी नारेबाज ही हूं नहीं हुआ अभूत या भूतपूर्व
नारेबाज का नारेबाज ही बना रहा और नारा लगाता हूं
अच्छी कविता कैसी हो हंसने की तरह रोने जैसी हो
जब हमारी नतिनियां पूछेंगी यह सवाल की क्या कर रहा था
जब हो रहा था आवाम पर अभूतपूर्व जुल्म
मेरे पास पहले से ही तैयार जवाब होगा
नारेबाजी कर रहा था जुल्म के खिलाफ
(ईमिः 07.09.2023)

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