Monday, September 25, 2023

बतरतीब 155 (दिनकर)

 Bhagwan Prasad Sinha


बरौनी स्टेसन से लगभग 5 किमी पर बीहट गांव स्थित यह चौराहा ज़ीरो प्वाइंट कहा जाता है, यहां से सड़कें गुवाहाटी, पटना, मुजफ्फरपुर तथा वाराणसी की दिशाओं में जाती हैं, राष्ट्रकवि दिनकर का गांव सिमरिया यहां से लगभग 5 किमी है। हम (मैं तथा बीएचयू के प्रोफेसर्स रामाज्ञा शशिधर और प्रभाकर सिंह) इसी के विकट देबी दरबार में रुके थे। यह पूरा इलाका दिनकरमय है।चौराहे पर ऊंचे मंच पर दिनकर की भव्य प्रतिमा है। प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद यहीं से कार-मोटर साइकिलों के जुलूस में लभग 5 किमी दूर दिनकर के गांव सिमरिया स्थित दिनकर सभागार में 10 दिन के दिनकर समरोह के अंतिम दिन के कार्यक्रम में हमें जाना था। तस्वीर में सबसे बांए सिमरिया के ही कवि, कथाकार, लेखक, बीएचयू में हिंदी के प्रो. रामाज्ञा शशिधर हैं तथा उनके बगल में उन्हीं के सहकर्मी, कवि और आलोचक, प्रोफेसर प्रभाकर सिंह। उनकी बगल में मार्क्सवादी, चिंतक भगवान भाई (डॉ. भगवान प्रसाद सिन्हा) हैं । मेरी दाहिनी तरफ बेगू सराय को भारत का लेनिनग्राद की उपमा दिलाने वाले कर्णधारों में शामिल रहे, सीपीआई के पूर्व सांसद, शत्रुध्न सिंह हैं। बरौनी के औद्योगिक क्षेत्र के कई ग्राम पंचायतों के समटे, बीहट गांव का क्रांतिकारी इतिहास रहा है, 1930 के दशक में चौकीदारीआंदोलन के नाम से जाने जाने वाले लगानबंदी आंदोलन में गांव के एक आंदालनकारी ने शहादत दी थी, 1942 में भी गांव के एक आंदोलनकारी शहीद हुए थे। Ramagya Shashidhar ने बताया कि 1970 और 80 के दशकों में बीहट गांव और बाजार क्रांतिकारी सांस्कृतिक-साहित्यिक गतिविधियों का जीवंत केंद्र हुआ करता था। लेकिन 21 वीं शदी में यहां की लेनिनग्राद धीरे-धीरे सेंट पीटर्सबर्ग में तब्दील हो गया और बीहट भी बदल गया। अब यह गांव क्रांति की अगली लहर के इंतजार में है।

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