Saturday, September 16, 2023

लल्ला पुराण 332 (सनातन)

 सनातन पर चर्चा में एक कमेंट


पहली बात आपका शीर्षक दुराग्रह पूर्ण है, एक सदस्य से विमर्श की जगह एक वामी से विमर्श , विषय पर बात करना आपका पूर्वाग्रह दर्शाता है। यह पूछने पर वामी क्या होता है, कुछ ऊट-पटांग बोलने लगेंगे। आप स्वस्थ विमर्श की बजाय प्रकारांतर से व्यक्ति को एक फैसलाकुन कोष्ठक में बंद करके शुरुआत कर रहे हैं, मैं कई बार कह चुका हूं कि मैं किसी पार्टी का सदस्य नहीं हूं, लेकिन 'आपको कम्युनिस्ट पार्टी से पैसा मिलता होगा' किस्म की बात निराधार, निंदनीय, आपत्तिजनक निजी आक्षेप है। आपको भाजपा क्या देती है, मुझे नहीं पता, लेकिन मैंने तो 18 साल की ही उम्र से ही अपने पिताजी तक से पैसा नहीं लिया।

दूसरी बात अपना लेख पढ़ने का अनुरोध इस लिए किया कि किसी विषय पर विमर्श का एक शुरआती विंदु होना चाहिए, जिस पर बहस से समझ समृद्ध करने में मदद मिलती है। यह लेख पढ़ने के लिए यह बताने के लिए नहीं कहा कि मैं लेखक हूं, इसकी जरूरत नहीं है। मैं तो लंबे समय तक कलम की मजदूरी से घर चलाया है। यह लेख भी इसलिए शेयर किया कि लोग सनातन का भजन गाते रहते हैं, बताते नहीं कि सनातन क्या है?

'हमारे आदिम पूर्वजों ने विवेक के इस्तेमाल से खुद को पशुकुल से अलग किया' मेरे इस वाक्य से आप असहमत हैं, आपकी असहमति का स्वागत है, लेकिन असहमति की सकारण व्याख्या न की जाए तो ठीक है वरना ऐसी बात फतवेबाजी होती है। आपका कहना कि चर्चा यह नहीं बल्कि यह है, कि सनातन धर्म क्या है। सनातन का मतलब शाश्वत है और शाश्वत केवल परिवर्तन है, इसे समझने के लिए मानव विकास का इतिहास समझना जरूरी है, जिसकी शुरुआत आदिम मानव की पशुकुल से भिन्नता से हुई।

लगता नहीं आपकी रुचि गंभीर विमर्श में है, बल्कि शब्दाडंबर के बवंडर से किसी को छोटा दिखाने में है। दूसरों को छोटा दिखाकर बड़ा बनने के प्रयास में व्यक्ति बौना दिखता है। सादर।

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