मैंने अलिखे के सवाल की बजाय लिखे पर सवाल करने के अनुरोध के साथ एक पोस्ट शेयर किया कि कुछ लोग जो लिखा जाए उस पर सवाल करने की बजाय पूछने लगते हैं कि इस पर क्यों नहीं लिखते। अपना विषय चुनने का अधिकार लेखक का होता है, अपनी रुचि के विषय पर आप लिखिए। उस पर एक सज्जन ने कमेंट किया,
'Ish सर मने कसम खा लिए हैं कि कुरान, इस्लाम पर नही बोलेंगे? मानवता के शिक्षक को मात्र सनातन वाली पाठ आती है इसमे कोई अचरज नही है क्योंकि एजेंडा भी कोई चीज होती है।'
उसका जवाब:
संदर्भ-प्रसंग के अनुसार कुरान, इस्लाम पर भी बोलते हैं, अंधभक्त तो हैं नहीं कि बिना संदर्भ-प्रसंग किसी भी बात पर रटा भजन गाते रहेंगे! मानवता का शिक्षक मानवता की सेवा में जरूरत के अनुसार हर तरह का पाठ पढ़ाता है। सनातन का संदर्भ था और कुंदबुद्धि अंधभक्त बिना जाने कि सनातन क्या है, सनातन का भजन गा रहे थे। जैसे वाम के दौरे से पीड़ित रोगी वाम क्या है, पूछने पर आंय-बांय करते हैं, वैसे ही सनातन का भजन गाने वालों से पूछने पर कि सनातन क्या है? मुझे लगा सनातन पर गंभीर विमर्श होना चाहिए, तो एक छोटा सा गंभीर लेख लिखकर शेयर किया। सनातन का भजन गाने वाले अंधभक्त वहां से गायब, जिस तरह जब भी वाम पर गंभीरर विमर्श शुरू किया तो वाम के दौरे से पीड़ित रोगी या तो गायब होते थे या गाली-गलौच से अपनी कुंठा निकालते थे। एजेंडा तो सबका होता है, बिना संदर्भ कुरान, इस्लाम की रट लगाना या हिंदू-मुस्लिम नरेटिव से सांप्रदायिक नफरत फैलाना भी एजेंडा है। हमारा तो खुला एजेंडा है जनपक्षीय चेतना और सामाजिक सौहार्द के प्रसार से मानवता की सेवा। सांप्रदायिक मानसिकता वालों का एजेंडा है, चुनावी ध्रवीकरण के लिए हिंदू-मुस्लिम नरेटिव के नफरती भजन से समाज की सामासिक संस्कृति का विखंडन और स्वतंत्रता-समानता-बंधुत्व की भावना की संविधान की आत्मा पर प्रहार। जनतांत्रिक राज्य में संविधान के प्रति निष्ठा ही राष्ट्रवाद होता है। कोई भी काम, खासकर लेखन या व्याख्यान निरुद्देश्य नहीं होता, मैं तो हमेशा सोद्देश्य (यानि एजेंडा के अनुरूप) ही लिखता हूं। ऐंटोव चेखव का एक वक्तव्य है, 'कला के लिए कला' अपराध है। वह सभी बातों पर लागू होता है। जीने के लिए जीना अपराध है। सादर, उम्मीद है, आगे से अलिखे के रटे सवाल की बजाय लिखे पर सार्थक विमर्श से लोगों की ज्ञान की जिज्ञासा शांत करने में मदद करेंगे और मानवता की सेवा का एजेंडा अपनाएंगे। सादर।
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