जिनके पास गर्व करने को कुछ नहीं होता वे अपने जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना पर ही गर्व कर सकते हैं। तथाकथित आचार्य कुल के ये वंशज इतने मूर्ख और अनपढ़ होते हैं कि मुहावरे को गाली समझते हैं। बाभन से इंसान बनना जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेकसम्मत इंसान की अस्मिता हासिल करने का मुहावरा होता है। लेकिन रटा भजन गाने वाले अंधभक्तों का साहित्य से क्या लेना-देना? बाभन से इंसान बनने में हिंदू-मसलमान या अहिर-भूमिहार आदि से इंसान बनना भी शामिल है। इनका इतिहासबोध इतना अफवाहजन्य होता है कि बिना परिभाषा जाने कभी वाम के दौरे से पीड़ित रहते हैं तो कभी स्टालिन के भूत से प्रताड़ित हो अभुआने लगते हैं। बाभन से इंसान बनना मुश्किल जरूर है, लेकिन सुखद।
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