बुद्ध पर एक चर्चा में एक सज्जन ने पूछा क्या बुद्ध भक्क से पैदा हो गए, मैंने कहा कि आत्मावलोकन, आत्मैलोचना, अनुभव, चिंतन-मनन और विर्श की लंबी प्रक्रिया के बाद गौतम, बुद्ध बने। उन्होने पूछा पेड़ के नीचे अकेले किसे विमर्श करते थे, मैंने कहा अपने आपसे । खुद से बात करना बहुत मुश्किल होता है, उन्होंने बताया कि एक दिन आइने के सामने कोई विदेशी भाषा सीख रहे थे और कोई गलती नहीं हुई। उस पर कमेंट:
यह खुद से बात करना नहीं हुआ। आइने के सामने भाषा सीखना खुद से बात करना नहीं हुआ। खुद से बात करने के लिए गंभीर आत्मावलोकन और निर्मम आत्मालोचना की जरूरत होती है। जो मुश्किल काम है, लेकिन जैसा मैंने कहा, आसान काम तो हर कोई कर सकता है। मेरी याद में मैंने ऐसा आत्मावलोकन 9 10 साल की उम्र में अपने ब्राह्मणीय श्रेष्ठताबोध पर सवाल करके किया था। नदी के किनारे इमली के बगीचे में घंटों अकेला बैठा था. जब लगा कि और देर होने से लोग खोजने निकल आएंगे। रोचक घटना है फिर कभी लिखूंगा। ब्राह्मणीय श्रेष्ठताबोध के दंभ में (हर श्रेष्ठताबोध में दंभ के तत्व होते ही हैं) अपने से लंबे-चौड़े एक लड़के को झोला न ढोने के कारण मारने के लिए बेल्ट निकाल लिया उसके मार खाने से इंकार करने पर (हाथ पकड़ लेने पर) अपमानित महसूस करने कीअमानवीय गलती कर दिया था। 57-58 साल पुरानी बात है याद नहीं अपने से क्या बात कर रहा होऊंगा लेकिन इतना याद है कि खुद से पूछा था कि ब्राह्मण होने में उसका क्या योगदान है? यदि मैं 200 मीटर पश्चिम पैदा होता और वह उतना ही पूरब तो वह मेरी जगह होता और मैं उसकी। तब तो नहीं लगा था, लेकिन अब लगता है कि उस ऐतिहासिक परिवेश और चरण (1965) में सीमित एक्सपोजर वाले 10 साल के संस्कारी ब्राह्मण बालक द्वारा ऐसा आत्मावलोकन और निर्मम आत्मालोचना बड़ी बात थी। शीशे के सामने पढ़ना छोड़कर एकांत (Solitude) तलाश कर (तुम्हारे पास तो मनोरम एकांत की सुविधाएं हैं) अपने आप से बात करो। बहुत आनंद आएगा। इसीलिए तो कहता हूं बाभन से इंसान बनना मुश्किल तो है लेकिन सुखद। और फिर वही आसान काम तो हर कोई कर सकता है।कुछ जरूरी काम से समय चुराकर बहुत लंबा कमेंट लिखा गया। जब मैं हॉस्टल में वार्डन था तो जब कोई लड़का किसी और पर 'ऐक्सन' लेने की बात करता था तो मैं उसे कहता था कि अधिकारी के लिए 'ऐक्सन' लेना सबसे आसान होता है, लेकिन हमने जिंदगी में कभी आसान काम किए ही नहीं।
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