बुद्ध पर एकचर्चा में एक सज्जन ने मुझे चिढ़ाने के लिए कहा कि बुद्ध क्षत्रिय से इंसान बन गए होंगे, मंने कहा तभी तो वे बुद्ध हो गए। मैं जन्म के संयोग की अस्मिता से जुड़ी प्रवृत्तियों और पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर विवेेेक सम्मत इंसान की अस्मिता हासिल करने के अर्थ में 'बाभन से इंसान बनने का मुहावरा गढ़ा है। एक सज्जन इतने नाराज हुए कि लिखे कि मैं हाथी के घुसने से पैदा हुआ। उसका क्या मतलब है मैं समझ नहीं पाया और लिखा:
हम हाथी या शेर घुसने से नहीं पैदा हुए. मैं तो आम आदमियों की तरह अपने-माता पिता के अंतरंग संबंधों से ही पैदा हुआ, लेकिन यह एक संयोग मात्र है कि कोई किसी विशिष्ट क्षेत्र; विशिष्ट धर्म, विशिष्ट जाति में या स्त्री या पुरुष के रूप में पैदा हो गया. जिसमें कोई उसका कोई योगदान नहीं है तो उस पर न गर्व करना उचित है न शर्म। महत्वपूर्ण यह है कि कहीं भी पैदा होकर कौन क्या करता है; क्या सोचता है; उसका परिप्रेक्ष्य क्या है -- मानवता की सेवा का या उसे खंडित-मंडित करने का; तर्क और विवेक का या उंमादी धर्मोमाद का। हाथी और मनुष्यों के जीववैज्ञानिक संबंधों को ही नहीं, हम तो बहुत कुछ नहीं जानते और बहुत कुछ नहीं पढ़ा पाए, न आप जैसे ज्ञानी हैं, न ही शानी। वैसे भी हमने कभी जीवविज्ञान नहीं पढ़ा। सहज बोध और परिवेश से हासिल जानकारी के अनुसार मनुष्य स्त्री-पुरुष के संबंधों से पैदा होते हैं और कहां पैदा हो गए, वह महज एक जीववैज्ञानिक संयोग है, जिसे जीववैज्ञानिक दुर्टना कहना जन्म देने वाले माता-पिता की अवमानना नहीं है, उनकी मासूमियत का वर्णन है कि वे जानते ही नहीं कि उनकी अंतरंगता के परिणामस्वरूप कब और कौन पैदा होगा।
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