हिंदुत्व संस्कृति नहीं, इस्लामी सांप्रदायिकता के पूरक के रूप में औपनिवेशिक शासकों की शह पर निर्मित एक सांप्रदायिक, फासीवादी विचारधारा है। कवि की उड़ान हमेशा इतिहासपरक नहीं होती। मर्दवाद, नस्लवाद, जातिवाद की ही तरह सांप्रदायिकता भी कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है, न ही यह वसुधैव कुटुंबकं की तरह कोई विचार है जो पीढ़ी-दर पीढ़ी हम तक चली आई है, सांप्रदायिकता विचार नहीं, विचारधारा है जो हम अपने रोजमर्रा के व्यवहार और विमर्श में निर्मित और पुनर्निर्मित करते हैं। इसका निर्माण बांटो-राज करो की औपनिवेशिक नीति के तहत ऐतिहासिक कारणों से हुआ और भविष्य में ऐतिहासिक कारणों से ही इसका अंत भी संभव ही नहीं अवश्यंभावी है। कभी-न-कभी बर्लिन वाल की ही तरह बंगाल और पंजाब में बनी कृतिम सीमा रेखाएं भी ध्वस्त होंगी। प्राचीन काल में यूनानियों ने सिंधु (इंडस) घाटी क्षेत्र को इंडिया कहना शुरू किया जो उच्चारण के कारणों से अरबी में हिंदू हो गया। कालांतर में भौगोलिक पहचान सामुदायिक पहचान में बदल गयी । वैदिक संस्कृति के लोग हिंदुस्तान में नहीं, बलूचिस्तान से हरयाणा तक फैले सप्तसैंधव (आर्याव्रत) क्षेत्र में रहते थे। एक राजनैतिक इकाई के रूप में हिंदुस्तान शब्द का प्रयोग सबसे पहले मुगल साम्राज्य के लिए मुगलकाल में हुआ।
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