सोसल मीडिया के प्लेटफॉर्म विमर्श यानि बहस-मुहावसे के लिए ही हैं, अनजानेे में किसी की बात सेअवमानना की अनुभूति होो तोो ्लग बात है, लेकिन हम लोग इतने समझदार त हैं ही कि जानबूझकर की गई अवमानना और अनजाने में हो गी अवमानना में अंतर समझ सकते हैंं, अनजाने में हो गयी गलती के लिए माफी मांग लेनी चाहिए। जानबूझ कर निजी आक्षेप या रटे भजन के विषयांतर से विमर्श विकृत करना बौद्धिक अपराद है। मैं तो जानबूझकर अवमानना करनेे वालों कोो ब्लॉक कर देता हूं, ऐसेे अवांछनीय तत्वों से उलझकर अपना समय क्यों नष्ट करें। किसी की बात का खंडन कही गयी बात की तथ्य-तर्कों पर आधारित आलोचना से होनी चाहिए। निजी आक्षेप भी तथ्य-तर्कों के आधार पर होनी चाहिए। किसी से यह कहना कि इस पर लिखते हैं, इसपर क्यों नहीं? किस्म केेे अनर्गल सवाल अवमानना की ही कोटि में आतेे हैं। फरियाना-निपटना बुद्धिजीवियों का नहीं बाहुबलियों का काम है। किसी से बहुत दिक्कत होो तो ब्लॉक का ऑप्सन है।
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