Thursday, September 28, 2023

बेतरतीब 156 (बिलवाई)

 अपने गांव संबंधी एक पोस्ट पर एक कमेंट पर कमेंट

Daya Shankar Rai शाहगंज का सेंट थॉमस तो बहुत नामी कॉलेज था। हम जब मिडिल में थे तो वहां के एक चर्चित प्रिंसिपल हस्नैन साहब थे, जिनके प्रशासन के बारे में इलाके में कई किंवदंतियां थीं। चाचा जी के शाहगंज से बिलवाई जाना तो खला होगा।

बिलवाई तो बहुत छोटा स्टेसन है, बगल की बाजार बीबीगंज है और चौराहा कलान।1967-72 के दौरान हम लगभग 7 मील पैदल चलकर शाम लगभग 7 बजे की लखनऊ-मुगलसराय पैसेंजर पकड़ने कलान चौराहे पर चाय पीते हुए आते थे, एक लघु उपन्यास की योजना में उस चौराहे पर काफी घटनाएं घटित होती हैं, 2016 में लगभग 3000 शब्द के बाद जेएनयू आंदोलन में भागीदारी और उस पर लिखने में ऐसा भटका कि अभी तक भटका ही रह गया। एक बार वह फाइल खोला तो लगा कि घटनाओं के संदर्भ ही दिलो-दिमाग से उतर गए हैं। जिस दिन जेएनयू में ह्यूमन चेन का कार्यक्रम था, मैं जेएनयू पर लेख लिख रहा था और सोचा कि मेरे न जाने से एक शंख्या का मामला है, लेकिन लेनिन की 'राज्य और क्रांति' की पोस्ट स्क्रिप्ट याद आई जिसमें वे किताब में बाद में लिखने के लिए छोड़े गए हिस्से के बारे में लिखते हैं कि उसके लिए अब शायद समय न मिले और यह लिखकर संतोष करते हैं कि क्रांति में भागीदारी उसके बारे में लिखने से ज्यादा सुखद है। (Participating in revolution is more pleasant than writing about it. ) और लैज टॉप बंद किया और हिंदू कॉलेज के आवास के लिए निकल पड़ा जीवन के सबसे सुखद अनुभवों में से एक के लिए। न जाता तो आजीवन मन कचोटता। उसके बाद हिंदी-अंग्रेजी में दो-दो लेख लिखे। एक का शीर्षक है, 'जेएनयू का विचार और संघी राष्ट्रोंमाद' (The Idea of JNU and RSS Jingoism) तबसे जेएनयू के मित्रों ने जेएनयू को विचार कहना शुरू किया और विचार मरते नहीं, फैलते हैं और इतिहास रचते हैं, जेएनयू का विचार कई कैंपसों में फैलने लगा। बिलवाई स्टेसन पर पैसंजर कम-से-कम आधे घंटे तो देर से आती ही थी।

एक शाम मैं स्टेसन पहुंचने में 20-25 मिनट देर हो गई और ट्रेन छूट गई लगभग साढ़े दस बजे, बाजार बंद होने तक बीबीगंज बाजार में चाय-वाय पीते अपरिचितों से परिचय कर करके गप्पियाते बिताया फिर रात भर अकेले सुनसान प्लेटफॉर्म पर चहलकदमी करते बिताया। बीच-बीच में बेंच पर बैठ जाता और कभी-कभी 15-20ल मिनटके लिए आंखें बंद हो जाती। एक अम्मा स्टेसन के पास के पोखरे के बगल की झोपड़ी में चाय बनाती थी। सुबह लगभग 5 बजे उन्होंने कोयले का चूल्हा जलाना शुरू किया तो उन्हें देखकर वर्णनातीत राहत की अनुभूति हुई। मुझे इतनी सुबह देख उन्हें बहुत अचंभा हुआ और पूरी बात जानकर उतनी ही सहानुभूति। वह रात मुझे कभी भूली नहीं।वे पंखी झलकर चूल्हा जल्दी जलाने लगी और तभी सड़क से पटरी की क्रासिंग का गेट बंद करने वाला अपनी लाल-हरी झंडियों के साथ आ गया। दोनों से गप्पियाते हुए अम्मा ने जल्दी ही चूल्हा जलाकर चाय रख दिया।

फैन के साथ चाय पीते हुए फाटक वाले भाई ने जलाकर एक बीड़ी बढ़ाया औक कस लेते ही जोर की खांसी आई और सोचा कि जिंदगी में फिर कभी बीड़ी-सिगरेट नहीं पिऊंगा। डेढ़-दो साल बाद इलाहाबाद विवि में पढ़ने गया तो चाय की अड्डेबाजी में दोस्तों के साथ यह सोचकर एकाधकश लेने लगा कि मेरी तो आदत नहीं पड़ेगी। लेकिन जल्दी ही आदत पड़ गयी और पान की दुकान पर सिगरेट का उधार-खाता खुल गया। हार्ट अटैक के बाद डॉ. ने सिगरेट छोड़ने को कहा तो असंभव सा लगा, लेकिन असंभव महज एक सैद्धांतिक अवधारणा है।

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