Friday, September 15, 2023

लल्ला पुराम 329 (ब्राह्मणवाद)

 मैं कभी कोई अनावश्यक बात नहीं करता, जबकोई संदर्भ होता है तो उस पर कमेंट करता हूं मैं कभी किसी धर्म के देवी-देवताओं; पैगंबरों-अवतारों के बारे में कोई अपमानजनक बात नहीं करता मै नास्तिक हूं, न भगवान को मानता हूं न धर्म, लेकिन धार्मिकों से मुझे कोई दिक्कत नहीं है, मेरी पत्नी बहुतधार्मिक हैं। धार्मिकता की आड़ में धर्मोंमादी उंमाद या फिरकापरस्ती का विरोध करता हूं, और अपनी बात तर्क-तथ्य के आधार पर रखता हूं, जिस विषय में जानकारी नहीं होती चुप रहता हूं, या पूछ लेता हूं। अच्च कोटि के नीचता के आक्षेपों का जवाब भी यथा संभव शिष्ट भाषा में ही देता हूं, अलिखे पर सवाल करना जहालत है, किसी व्यक्ति को जाहिल नहीं कहता। ब्राह्मणवाद वर्णाश्रम की विचारधारा है जो व्यक्तित्व का मूल्यांकन विचारों के नहीं जन्म के आधार पर करती है, जिसे मैं अवैज्ञानिक और अमानवीय मानता हूं। ऐसा करने वाले अब्राह्मण नवब्राह्मणवादी हैं जो सामाजिक चेतना के वैज्ञानिककरण (जनवादीकरण) के रास्ते के उतने ही बड़े गतिरोधक हैं जितने ब्राह्मणवादी। हर बात पर रटा भजन गाने वालों के लिए अंधभक्त से बेहतर शब्द मिलेगा तो उसकी जगह वह कहूंगा। मैं तो इस ग्रुप का माहौल देखकर ही बाहर हो गया था, स्वयं या किसी के कहने पर आपने और अमितमिश्र ने आग्रह किया तो फिर आ गया। जिससे ज्यादा परेशानी होती है, उसपर समय नष्ट करने की बजाय उसे ब्लॉक कर देता हूं। वर्णश्रम विचारधारा के बौद्धिक संरक्षक ब्राह्मण रहे हैं इसीलिए इसे ब्राह्मणवाद कहा जाता है।

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