Saturday, October 15, 2016

शिक्षा और ज्ञान 93




दिवि के शिक्षकों के एक ग्रुप में इस कविता:

हमारा वक़्त इतिहास का एक खास वक़्त है
इंसानों को जलाने वाले जमानत पाते हैं
आतताइयों के पुतले जलाने वाले जेल
(ईमिः14,10.2016)

पर एक स्वघोषित 'अंबेडकरवादी' भक्त को इस कविता में ब्रह्मणवाद दिखने लगा, कन्हैयाकुमार भूमिहार और साध्वी प्रज्ञा ओबीसी. अंत में उन्होंने यह कमेंट किया:

Abhishek Singh Ek taraf ham ambedkarvadi desh aur sanaatan unity ka prayas kare aur Mishra jee aur goel jee samaj me jahar phailaaye...kuchh unity ke liye kaam kar le...janm Safal Ho jaayega.. Jai bhim jai Patel hai Bharat...
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मेरा जवाब:
Ish Mishra
आप जैसे नवब्राह्मणवादी लोग अंबेडकर को वैसे ही बदनाम करते हैं जैसे ब्राह्मणवादी उनकी मूर्ति पर माला चढ़ाकर. अंबेडकर हिंदू (ब्राह्मण) धर्म की सनातनाका विनाश चाहते थे, उसकी श्रेणीबद्धता की एकता नहीं. कम-से-कम 'जाति का विनाश' पढ़ लें. अंबेडकर जाति और जातिवाद का विनाश चाहते थे, जातियों की धर्मोंमादी एकता नहीं. अंबेडकर हर तरह के जातीय--धार्मिक भेदभाव से मुक्त समतामूलक जमाज चाहते थे असमानता से बजबजाते हिंदू समाज का पुनरुत्थान नहीं. प्रोफाइल में शिक्षक लिखा है, तो पढ़ाने-बोलने के लिए थोड़ा पढ़ भी लीजिए, अपनी नवब्राह्मणवादी विकृति को अंबेडरवाद की खोल में लपेटने के लिए अंबेडकर के उद्धरण की जरूरत नहीं होती, लेकिन बौद्धिक विमर्श के लिए होती. अन्यथा हवाबाजी को बौद्धिक लंपटता कहते हैं.
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Ish Mishra

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