Monday, October 31, 2016

दस्तूर-ए-निजाम-ए-मजहब

ऐसा ही रहा है दस्तूर निजाम-ए-मजहब का
खुदा पापी कह कर फेंकता है जिसे अपने निजाम से
करता है वह इंसान इबादत उसी खुदा का
इसीलिए नकारता हूं खुदाओं की हस्ती
क्योंकि ढाते हैं वे इंसानियत पर
भक्तिभाव का जुल्म
(ईमिः 01.11.2016)

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