वैदिक काल 3000-1000 ईशापूर्व माना जाता है. हमारे ऋगवैदिक पूर्वजों को लिपिज्ञान नहीं था, श्रुतिज्ञान के भरोसे काम चलाते थे, इसीलिए वैदिक ज्ञान परंपरा को श्रुति और स्मृति परंपरा कहा जाता है. ऋगवैदिक आर्यों के वंशजों के लिपिज्ञान का काल लगभग बुद्ध का काल है. गुरुकुलों की शुरुआत हो गई थी, लिखना बाद में शुरू हुआ. शुरुआत में लिखित बौद्ध ग्रंथ अधिक थे, महाभारत, रामायण, मनुस्मृति पहली से पांचवी शताब्दी के बीच बौद्ध समतामूलक दर्शन के विरुद्ध लिखे गये प्रतीत होते हैं. रामायण इतिहास नहीं है बल्कि किवदंतियों और जनश्रुतियों पर आधारित मिथकीय महाकाव्य हैं जो पितृसत्तात्मक वर्णाश्रमी मूल्यों का पोषण करते हैं. आर्य जब सप्त-सैंधव (सिंध और पंजाब) क्षेत्र में रहते थे, उस समय की, वेदों में राजा सुदास और उनके पुत्र राजा दिबोदास की कहानी मिलती है. विश्वामित्र सुदास के मुख्य पुजारी थे, दिबोदास ने उन्हें हटाकर वशिष्ठ को मुख्य पुजारी बना दिया. विश्वामित्र क्रुद्ध होकर 10 राजाओं का सैनिक गठजोड़ बनाकर दिबोदास पर हमला कर दिया लेकिन दिबोदास ने इन्हें पराजित कर दिया. फिर समझौते के तहत दोनों को ही दिबोदास ने पुजारी रख लिया. वैदिक साहित्य में में यह घटना दसराज्ञ युद्धं नाम से जानी जाती है.
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