Renu Umrao आपने बिना दृष्टांत और संदर्भ के एक गंभीर आरोप लगाते हुए फतवानुमा वक्तव्य दे दिया की मैं गाली-गलौच की भाषा का इस्तेमाल करता हूं, यह अवधारणा भी औरों की अवधारणा से प्रभावित है, मौलिक नहीं. मैं केवल तथ्य-तर्कों पर आधारित वक्तव्य देता हूं, हवाई शगूफेबाजी नहीं करता. शब्दों के चुनाव में सजग रहता हूं. ऊपर कमेंट में कौन सी बात आपको गाली-गलौच लहता है. ऐतिहासिक दृष्टांतों से मैने साबित करने की कोशिस की है कि दोनों तरफ युद्धोंमादी माहौल, अपनी सत्ता बचाने या सत्ता पाने के लिए होता है. कुछ लोग मेरा नाम सुनकर इतना बौखला जाते हैं कि मेरी अंतिम-क्रिया की विधा पूछने लगते हैं. जैसे इन्हें मालुम हो कि ये कितना जिएंगे? उनसे यही पूछ लेता हूं कि भाषा की यह तमीज मां-बाप से सीखा या शाखा में? इसमें कौन सी गाली हो गयी? अगर आपको गाली लगती है तो मतलब आपको (सामान्य रूप से कह रहा हूं, निजी नहीं) खुद अपनी भाषा की तमीज आपत्तिजनक लगती होगी, उसे सुधार लीजिए. वैसे आजकल यह भी पूछना बंद कर दिया हूं, गालियां नजर-अंदाज कर देता हूं. कुछलोग विप्र-प्रवर या पंडित जी जैसी गालियां मना करने पर भी देते रहते हैं, उन्हें भी माफ कर देता हूं. अब कभी ऐसे आरोप लगाओ तो संदर्भ और दृष्टांत के साथ. सादर.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment