वक़्त का गतिविज्ञान है एक सास्वत सत्य
काश न होते न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया के कमबख़्त नियम
दुनिया कहां से कहां पहुंच जाती
अन्याय के रूप ही न बदलते
विलुप्त हो गया होता शब्दकोश से
अन्याय नाम का शब्द
अवरोधक न होतीं यदि
यथास्थिति की अधोगामी प्रतिक्रिया
विप्लवी अग्रगामी क्रिया की
नहीं बदलता गुलामी का महज आकार-प्रकार
हो गया होता अबतक
मानव मुक्ति का सपना साकार
मगर कुछ भी नहीं स्थाई परिवर्तन के सिवा
अबकी होगी जब क्रिया जंग-ए-आज़ादी के परचम की
नाकाम हो जाएगी प्रतिक्रियावाद की सब प्रतिक्रिया
तब पढ़ा जाएगा
आकार-प्रकार का ही गुलामी के सार का मर्शिया
और वक्त बढ़ता जाएगा.
(ईमि: 14.10.2014)
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