ये सोचते हैं अगला 3 साल युद्धोंमादी राष्ट्रोंमाद के सहारे काट लेंगे. इनके पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है. यही हाल पाकिस्तानी हुक्मरानों का है. लेकिन राष्ट्रोंमाद, धर्मोंमाद से भी ज्यादा खतरनाक होता है. यहां तो दोनों की खिचड़ी है. उप्र के चुनाव के मद्देनजर हिंदुओं के पलायन और गोरक्षा के शगूफों को कमतर पड़ते देख इन्होने कश्मीर में आग लगा दी जो दावानल बन चुका है. पाकिस्तान-पाकिस्तान चिल्लाकर सारे मुद्दों से ध्यान बंटाने में फिलहाल तो ये सफल होते दिख रहे हैं. जंगखोरी का राष्टोंमाद कितना भी फैला लें, दोनों ही मुल्कों के हुक्मरानों में से कोई भी युद्ध की घोषणा नहीं कर सकता क्योंकि अमेरिका (भूमंडलीय पूंजी) को अपने दोनों चाकरों की सेवाओं और वाजारों (शिक्षा समेत) की जरूरत है. हबीब जालिब ने सही कहा है, 'न मेरा घर है खतरे में, न तेरा घर है खतरे में/वतन को कुछ नहीं खतरा, निजाम-ए-ज़र है खतरे में.'
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