Thursday, October 6, 2016

क्षणिकाएं 60 (811-20)

811
गाय हमारी माता है
दिमाग में हमारे गोबर जम जाता है
कभी वह पटेल को फासी पर लटकाता है
भगत सिंह को अंडमान भेजवाता है
गडकरी गोमूत्र पीकर कैंसर से मुक्ति पाता है
देशभक्त खबरनवीश हमको यह बतलाता है
फेरने से हाथ पीठ पर गोमाता के
रक्तचाप ठीक हो जाता है
वैसे ही जैसे एक तोला घी के हवन से
सैकड़ों टन आक्सीजन बन जाता है
वैसे तो ओबामा भी गोमांस खाता है
लेकिन उसका क्या वह तो विश्वभाग्यविधाता है
(बस यूं ही गाय की पीठ पर हाथ फेरने से  रक्तचाप ठीक होने की किसी चैनल की खबर की पोस्ट पर कलम की आवारगी)
(ईमि:25.08.2016)
812
पीठ पर बस्ता और सर पर लकड़ी का बोझ
चेहरे पर साधने को असंभव पर निशाने का बोध
लड़ते हुए पढ़ेगी पढ़ते हुए लड़ेगी
और बूझेगी बचपन पर बोझ का राज़
करेगी हमला ज़ुल्मत के किले पर
बना कलम को औज़ार-ओ-हथियार
बन योद्धा हिरावल दस्ते की
लगाएगी मेहनतकश को गुहार
धसक जाएगी बुनियाद लूट-खसोट के नजाम की
हाथ लहराते हुए साथ होगी जब ज़ुल्म के मातों की कतार
(ईमि: 31.08.2016)
813
यह किस भारत माता का बेटा है
अपने से अधिक ईंटों का भार जो ढोता है?
करता है जिसका बचपन ईंटा-गारा का काम
भारत भाग्य विधाता को क्या मालुम है इसका नाम?
ढोते-ढोते बोझ आजाएगा बुढ़ापा
कर नहीं पाएगा यह जवानी का स्यापा
था सरकार का 10 साला संपूर्ण साक्षरता का मिशन
जिसे हासिल किया चीन ने महज कुछ सालों में
चल रहा है यहां आज भी साक्षरता मिशन
है इसका तो बोझ से दुहरा बदन
और आंखों मे तकलीफ का उमड़ता समंदर
बंदानवाज़ कहेंगे इसे सीखना भारोत्तोलन का हुनर
यह किस भारत माता का बेटा है
जिसका बचपन भूख के आगे लेटा है?
(ईमिः04.09.2016)
814
लिखता ही रहेगा मेरा कलम हरफ-ए-सदाकत
रोक नहीं सकती इसे ज़ुल्मत की कोई भी ताकत
लिख रहे हों जब दानिशमंद सज्दों का अफसाना
लिखना ही है मेरे कलम को बगावत का तराना
बन रही हो ग़र सर झुकाके चलने की रवायत
लाजिम है बचाना सर उठाके चलने की आदत
फिरकापरस्त कहर से बचाना है गर कायनात
रोकना होगा शेख-बिरहमनों की फरेबी खुराफात
अंधेयुग के किलेदार से न होगा मेरा कलम भयभीत
बेख़ौफ लिखता रहेगा इस अंधेयुग के बेबाक गीत
(बस यों ही कलम फिर आवारा हो गया)
(ईमि: 05.09.2016)
815
बेटी की एक तस्वीर पर

ये जो सीधी-सादी दिखती लड़की है

जोर-ज़ुल्म की हो बात अगर 
शेरनी सी दहाड़ती है
चेहरे पर छिटकी है जो विनम्र मुस्कान
छिपा है उसमें फौलादी आत्म सम्मान
देता है बाप अगर कभी बर्दाश्तगी प्रवचन
याद दिलाती उसे नाइंसाफी की मुखालफत का वचन
सिखाओगे ग़र दो साल की बच्ची को जंग-ए-आजादी का गाना
कैसे लिखेगी वो समझौतों का अफसाना?
सिखाओगे बचपन में ग़र मेहनतकश के हक़ का तराना
कैसे लिखेगी वो निज़ाम-ए-ज़र की शेनां?
कहोगे ग़र उससे कि सवाल-दर-सवाल है ज्ञान की कुंजी
कैसे संभाल सकती है वो किसी परंपरा की पूंजी?
सवाल-दर-सवाल की पड़ जाती है जब आदत
कैसे कर सकती है किसी 'ईश' की इबादत?
कर देती बाप को इस बात से लाजवाब
लगाओगे पेड़ बबूल का कहां से फलेगा वो आम जनाब?
(कलम का आवारगी में 'धृतराष्टत्व' का भूत)
(ईमिः 04.09.2016).....
816
सोचे-समझे फैसले पर पुनर्विचार नहीं होता
जाकर वापस आने में एक नया दीदार होता है
(हा हा)
(ईमिः 01.10.2016)
817
दिलों की सफाई तो साथ की बुनियादी शर्त है
सरोकारों की साझी इमारत तो बनती रहती है
हा हा
(ईमिः 01.10.2016)
819
कत्ल की महारत उसकी ऐसी
वसूलता है लाश से
कत्ल में हुई जहमत का हरजाना
और खंज़र पर आए थोड़े से ख़म की भरपाई
(ईमि: 05.10.2016)
820
जब देखो दिल टूटने का राग अलापती रहती हो
इतना आरर दिल है तो इश्क क्यों करती हो?
इश्क नहीं है काम मोम से नाज़ुक दिल वालों का
इश्क के सदमात के लिए पत्थर सा दिल चाहिए
(ईमि: 05.10.2016)


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