माफी मांगना शर्म की नहीं गर्व की बात है. अनजाने में किसी से भी कुछ गलती हो सकती है(जानबूझकर अपराध होता है). हम सब साधारण इंसान हैं, असाधारण दिखने की कितनी भी कोशिशों के बावजूद. गलती छोटी-बड़ी जैसी भी हो, जब भी महसूस हो, उसपर अफ़सोस करना और इसका प्रभाव किसी और पर पड़े तो उससे माफी मांगना; गलती बड़ी हो तो शर्मसार महसूस करना वांछनीय है. शर्म एक क्रांतिकारी एहसास है. जो लोग खुद को सर्वज्ञ या सर्व-गुण संपन्न मान कर गलती मानने से इंकार करते हैं उनके व्यक्तित्व का विकास जड़ता और कुंठा का शिकार हो जाता है. और शिक्षक को मिसाल से पढ़ाना होता है. I have said elsewhere, one has to ruthlessly stand guard against oneself. मैं क्रोध को स्वाभाविक बताकर बात ताल सकता था. लेकिन आप सही हैं, यही जरूरी नहीं है, सही दिखना भी चाहिए. आवेश और परिणामस्वरूप भाषा के तल्ख़ तेवर से सफ़ेद दाढ़ी वाले शिक्षकों को बचना चाहिए. इस विषय पर कई रोचक कहानियाँ हैं, फिर कभी. कहीं से दबी-छुपी आवाज मुझसे मुक्ति पाने की भी आयी. उस पर कई रोचक कहानियाँ हैं वे भी फिर कभी.
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