लल्ला पुराण ३
सघन बर्षात की
उम्मीद लिए, नगण्य तीव्रता की
झींसा-झांसी के बाद, मौन बादलों को इस
विश्वास से निहारते हुए कि बादल हैं तो बरसेंगे ही, राजनैतिक अंडरवर्ल्ड के केंद्र दिल्ली से, क्षतिग्रस्त लल्ला चौराहे के सभी सदस्यों को
प्रात-काल का अभिवादन. मैं गांधीवादी नहीं हूँ, लेकिन एक ईमानदार, मौलिक चिन्तक और अभूतपूर्व लोकप्रियता वाले जन-नेता के रूप में गांधी जी का
बहुत सम्मान करता हूँ. गांधी जी जिस सत्य के आग्रह की बात करते थे उसके सामूहिक
अन्वेषण के हिमायती थे. सत्य के इस सामूहिक अन्वेषण के विमर्श लिए गांधीजी की
बुनियादी शर्तें थीं: पूर्वाग्रहों से मुक्त दिमाग से आत्म-तटस्थता के भाव और विमर्श में शामिल कर्त्ताओं के
परिप्रेक्ष्य की समझ. सुकरात ने कहा है, अपने को सर्वज्ञ समझने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है. जितना हम जानना-जनाना
चाहते हैं उसके लिए एक ज़िंदगी नाकाफी है. हम अगर इस प्रक्रिया में अपना छोटा सा
अग्रगामी योगदान दे सकें तो वह हमारे लिए संतोष की बात होनी चाहिए. तेवर से भी
मास्टरों की बहुत बुरी आदत होती है, हर मंच को न-न कहते हुए भी क्लासरूम माँ बैठते हैं. (हेरम्ब जी, जो मुझसे उम्र में ६ महीने छोटे और शिक्षण
अनुभव में बहुत बड़े हैं, शायद मेरी बात से
सहमत हों) चौराहे पर आया पहली चाय के साथ सुप्रभात कहने में मित्र नृपेन्द्र से
आगे निकलने के लिए और बैठ गया प्रवचन देने. अहं और प्रतिष्ठा की विभाजक-रेखा बहुत
पतली होती है, दिमाग का काम उसे
पहचानना और अंतरात्मा का काम अहं को दुत्कारने एवं प्रतिष्ठा के लिए मर-मिट जाने
को प्रेरित करे. मन तो इन मुद्दों पर हाब्स और रूसो की बात करने का हो रहा है
लेकिन आदत बुरी बाला है. कुछ लेखक कभी-कभी फूटनोट को इतना विस्तार दे देते हैं कि
टेक्स्ट ही भूल जाते हैं. बात इलाहाबाद के छात्रों के एकाधिक मंचों के बहाने
आन्दोलनों की गतिशीलता/जड़ता और संगठनों/समुदायों में बिखराव/एकता पर करना चाहता था,
लेकिन अब फिर कभी. अभी इतना ही आग्रह है कि ये
मंच प्रतिद्वंदी न होकर सहयोगी(fraternal) बने रहें और चूंकि जयादातर लोग दोनों ही मंचों पर हैं, इस लिए आशा है कि ये मंच एक दूसरे की संपूरक की भूमिका
निभाते हुए इलाहाबादियों में देश-दुनिया पर सार्थक विमर्श को समृद्ध करेंगे.
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