लल्ला पुराण ५
मेरे पहुँचने तक, इस और एक और
पोस्ट पर इस मुद्दे पर काफी उत्तेजित विमर्श हो चूका. मित्र दीपक, मैं गम-ए-जहाँ पर ही लिखता हूँ उसीमें मेरा
गम-ए-दिल भी शामिल होता है. मैंने तो विमर्श के लिए एक शैद्धान्तिक मुद्दा उठाया
है और इस विषय में लोहिया से इत्तेफ़ाक रखता हूँ कि बलात्कार और वायदा-खिलाफी को
छोड़कर सभी रिश्ते जायज़ हैं. १८वी शताब्दी के एक अशिक्षित, आवारा दार्शनिक रूसो ने लिखा है, "Civility
introduces duality; one wants to look what one is not". The most visible
manifestation of this perennial contradiction between essence and appearance
can be seen in the families. Parents ad children live under the same roof for
tens of years without really interacting or discoursing. They only communicate
about very limited things. The one-to-one
relation between sex and love. The rich buys sex without love. All the comments
reflect male-notion of sexuality in general and female sexuality in particular,
that objectifies female body in exclusion of the personality. These patriarchal
notions of sexuality, we have acquired from societal values independent of our
conscious will. Many of us do not question and uncritically practice them. The
need is to unlearn the acquired moralities and replace them with rational ones.
In 1088 some friends interviewed me for
their diploma film in Mass communication in Jamia on pre and
extramarital relations in Hindi film and I supported both with Lohiite
arguments. लेकिन यह बात
स्त्री-पुरुष दोनों पर बराबर लागू होनी चाहिए. नायक के "परिस्थितिबस"
कितने भी सम्बन्ध बकन जाएँ, लेकिन वह तब भी
नायक रहता है और नायिका का बलात्कार भी हुआ हो तो भी उसके पास ऊंची चट्टान से गहरी
घाटी में छलांग लगाने या किसी दरियादिल पुरुष का "नाम लेनें" के अलावा
कोई रास्ता नहीं बचता. अगर सेक्स और प्रेम में इतना नज़दीकी रिश्ता होता तो रईशों
की हवश के लिए सेक्स मार्केट का क्या तर्क
है? आज यह बात यहीं खत्म करता हूँ. बाकी फिर कभी.@धीरज भारद्वाज. इन मामलों पर महिलाओं का बोलना
हमारी मर्दवादी सामाजिक मर्यादा में वर्जित है. लेकिन ये मेयादायें टूटेंगी,
शुरुआत हो चुकी है.
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