Thursday, July 12, 2012

लल्ला पुराण ६


विभासकल कुछ कमेंट्स और सुसंस्कृत  निजी आक्षेप और दानिशी फतवेबाजी से इतना खिन्न हुआ से खिन्न होकर मैं इलाहाबाद के सभी मंचों से गायब होने की सोच रहा हूँ तल्ख़ पोस्ट के साथ. कल रात Neo-MacCarthyism in India एक लेख पूरा करके मेल करना था, अब शायद आज कर पाऊँ, शुरुआत इस और सीमा-विश्वविजय की सज़ा की साथ घटना से किया है,. मैं एक मानवाधिकार संगठन "जनहस्तक्षेप” के सदस्य और अन्य मानवाधिकार संगठनों एवं जनांदोलनों के संपर्क में रहने के नाते दावे के साथ कहता हूँ कि ९९% मुठभेडेंकायराना नरसंहार हैं चाहें साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य से आतंकवाद के नाम पर निरीह मुसलामानों की ह्त्या हो या या साम्राज्यवादी भूमण्डलीय दलाली और उसके लिए किसानों और आदिवासियों को उजाड़ने के कृत्यों एवं भीषण भ्रष्टाचार और देश की संपदा की अवैधानिक लूट से ध्यान हटाने के लिए नक्सलवाद के नाम पर किसानों या आदिवासियों की हत्याएं हों.
 अदम गोंडवी की एक कविता की पोस्ट पर कोई अपनी संघ संस्कारित भाषा में मेरा मंगलगान करने लगा उन्हें तो मैंने ब्लाक कर दिया है. किन्तु
मुझे लगता है कि कई सक्रिय सदस्यज्ञान पार्क और सार्थक विमर्श के तमाम दावों के बावजूद, (मित्रोंक्षमा कीजियेगादर-असल मैंने सत्यम ब्रूयात वाले श्लोक की दूसरी पंक्ति पढ़ी ही  नहीं),  सामाजिक सरोकारों से मुक्तआत्म-मोह से पीड़ितएकाकीपन से त्रस्त खाली समय में चकल्लस से के लिए आते हैं और तर्कों तथ्यों के अभाव में निजी, आधारहीन आक्षेपों से नावाजते हैं, मैं इतना आह्लादित हो जाता हूँ कि बर्दाश्त नहीं कर पाता.मैंने "इसी विषय पर  "समकालीन तीसरी दुनियाँ" के ताजे अंक में छपे लेख का लिंक डाला थायाद नहीं उस पर कोई कमेन्ट आया था. मेरे पास समय काटने की नहींसमय की कमी की समस्या है. इन मंचों से विदा लेने के पहले एक फुल-लेंथ लेख जितनी बड़ी पोस्ट डालूँगा. आमीन.

2 comments:

  1. समयाभाव के बावजूद किसी भी मंच को न छोड़ें बल्कि संघी धूर्ततो का जवाब भी न दें बाकी लोगों को आपके विचारों की परमावश्यकता है।

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  2. आप ठीक कह रहे हैं.

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