Raju Jaihind जी, मौजूदा चुनावी वामपंथी पार्टियों का चरित्र, अन्य पार्टियों से गुणात्मक रूप से भिन्न नहीं है. समस्या का हल है, जनचेतना जो फिलहाल खुद भ्रष्ट है. पढ़े लिखे लोग यदि जाति और धर्म के आधार पर आपराधिक प्रवृत्ति के नेताओं के आगे पीछे घूमेंगे तो क्या होगा. एक बार एक चीनी गौहाटी-दिल्ली यात्रा में सहयात्री था. बात-चीत में उसने एक टिप्पणी किया कि चीन में भ्रष्टाचार प्रशासन के उच्च तप्कों में है लेकिन हिन्दुस्तान में मानसिक रूप से हर कोई भ्रष्ट है. इस मंच पर ही देखिये, ज़रा सी असुविधाजनक बात कह दीजिए सब बौखला जाते हैं. मैंने कह दिया कि चरण स्पर्श अभिवादन का सामंती तरीका है या हमारी तथाकथित सामाजिक मर्यादा, वर्णाश्रमी-मर्दवादी सामंती मर्यादा है, लोग मुझ पर पश्चिम-परस्ती का आरोप लगाने लगे. लड़कियों की परिधान की आज़ादी या चुनाव की आजादी की हिमायत को भारतीय गौरवशाली परम्पराओं का अपमान बताया जाने लगता है. बदलाव के लिए आवश्यक है सोच में बदलाव. जी हां मैं दकियानूसी भारतीय परम्पराओं का घोर विरोधी हूँ, जिसकी शुरुआत मैंने १३-१४ साल की उम्र में जनेऊ तोड़ कर कर दी थी. मेरी किसी पोस्ट पर किसी ने आनुशासन की बात की, अनुशासन क्या है? यथास्थिति के मूल्यों, मर्यादाओं का वफादारी से पालन; बाप की आज्ञा बिना सवाल किये मानना (राम और परशुराम के मिथकीय चरित्र इसके ज्वलंत उदाहरण है, एक बाप की ऐय्याशी के लिए बन-बन भटक कर एक लड़की के नाक कान काटने या छिप कर कायराना ढंग से बेवजह ह्त्या करने समेत तमाम अमानवीय हरकतेन् करता है, दूसरा बाप के आदेश से अपनी जननी की ह्त्या) अनुशासन है, मैंने बाप की अफसर बनने के प्रयास की आज्ञा न मानाने के लिए, १८ वर्ष की उम्र से पैसा लेना बंद कर दिया, क्योंकि अर्थ ही मूल है, यदि विचारों से स्वतंत्र होना चाहते हैं तो आर्थिक आत्म-निर्भरता आवश्यक है. मैं तो समाज के हिसाब से बचपन से ही अनुशासनहीन रहा हूँ और मुझे अपनी अनुशासनहीनता पर गर्व है. मैं अपनी मर्यादा और आनुशासन के मानदण्ड मानवीय मूल्यों एवं विवेक के आधार पर स्वयं तय करता हूँ और अपने सिद्धांतों की परिक्षा अपने ऊपर लागू होने से शुरू होती है. मैं दो बेटियों का फक्र्मंद बाप हूँ जो बिना नियंत्रण और तथाकथित आनुशासन के बेहतरीन इंसान बन रही हैं. therefore my dear friend, no individual or party can bring about any qualitative change without changing the stereotyped mind set bu replacing acquired moralities by rational ones.
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