Sunday, July 15, 2012

लल्ला पुराण ८


शैलेन्द्र जी अब तो यह शब्द पत्रकारीय और शैक्षणिक भाषा की शब्दावली का अंग बन चुका है. जी हाँ एक ही शब्द के सभी पर्याय वही असर नहीं डालते. जी नहीं, भवनात्ममक शोषण के लिए नहीं, बल्कि जानबूझ कर मैं मर्दवाद का इस्तेमाल करता हूँ, मर्दवादी मानसिकता को झकझोरने के लिए. मर्दवाद वर्चस्व की विचारधारा है और नारीवाद उसे तोड़ने की. The feminists seek power not to dominate but to help and heal. It just want to break the genderized inequalities, i.e. to say it seeks to restore the original balance b/w sexes. इस मंच पर भी शायद कुछ लोग हों जो एक बेटे के लिए २/३/४/५  बेटियाँ पैदा किए हों, मैं सिर्फ कयास लगा रहा हूँ. लेकिन गारंटी से कहता हूँ जो भी बालक अपनी माँ-बाप का तीसरी/चौथी/पांचवीं औलाद हो हो उससे बड़ी सभी बहने होंगी. और अपवाद नियमों की पुष्टि ही करते हैं. अब ऐसा बाप कितना भी डंका पीटे लड़के-लड़की में न फर्क करने की, बेटियाँ यकीन नहीं करतीं. कानपुर के एक मित्र सुमन ने १९८८ में एक फिल्म बनाई थी, "बंद फ़ाइल' कानपुर और चंडीगढ़ में अलग-अलग घटनाओं में २-२ बहनों ने पैक्ट करके तीसरे भाई के जन्म के बाद आत्म-ह्त्या कर लिया था. पत्नी का भाई होना गाली क्यों हो गया? यही मर्दवादी सोच है. छात्र-जीवन में मामू गाली के रूप में बिना सोचे हम लोग इस्तेमाल करते थे. २० साल पहले साप्रदायिकता पर एक लेख में मैंने लिखा था, "खैर, सुकरात को तो मार डाला गया....." और संपादक के इस आग्रह को मैंने नहीं माना कि लिखूं, "सुकरात को मौत की सज़ा दे दी गयी..." आपसे बिलकुल सहमत हूँ कि सभी पर्याय एक ही अर्थ नहीं देते.

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