Tuesday, July 17, 2012

लल्ला पुराण ९


भगवान तो होता नहीं, आस्था ही होती है. आस्था पर हमले को भगवान पर छोड़ देना चाहिए वह निपट लेगा.अठारहवी शताब्दी में  वोल्तेयर ने आस्थावानों से दुनिया की अमानवीय विसंगतियों की तरफ इंगित करते हुए सव्व्ल पूँछा था, जिसे भगत सिंह ने जेल से लिखे अपने लेख, "मैं नास्तिक क्यों हूँ?" में उद्धृत किया है, if there is an almighty God and is in charge of all the world affairs that contain evils, then there are 3 possibilities: 1. God can remove the evils but he does not wish to, it is wickedness. 2. He wishes to remove them but cant that means he is not almighty. 3. Neither he wishes to nor can remove the evils, deadly combination of wickedness and non-almighty. If God and his messengers/agents are so strong, then why Salman Rushdi  gets a Fatwa of death sentence and is not allowed to visit India just because one of the characters of his novel resembles , Mohammad, the self-proclaimed and readily acknowledged prophet-- messenger of God? Why MF Hussain had to flee the country? Why so-much bloodshed in His name? The enormous bloodshed has happened in the name of God in the world history. All the societies create their own language,  idioms, phrases, religion and Gods/Goddesses according to their historical needs and that is why varying forms and characters  of God. In the egalitarian Rigvedic times, there were no Brahma Vishnu, Mahesh. There were only natural powers as Gods -- Indra, Arun, varun, Agni. With changing times, for theological justification of inequalities generated by surplus production and its appropriation,  new Gods and Goddesses were conceptualized .

कौटिल्य के समय तक भी न तो भगवानों की त्रिमूर्ति थी और न् ही विष्णु के अवतार राम-कृष्ण. अर्थशास्त्र में वे  विजिगीषु (विजयकामी) राजा को युद्ध अभियान पर निकलने के वक़्त समय देवताओं और दानवों की अर्चना करने की सलाह देते हैं. देवताओं में वैदिक देवताओं (अरुण, वरुण,..) का जिक्र करते हैं तथा कंस और कृष्ण को एक साथ दानवों की कोटि में रखता हैं(अर्थशास्त्र का आर.पी.कांगले द्वाराअंग्रेजी अनुवाद). वाल्मीकि के राम मर्यादा पुरुषोत्तमत्तम हैं, तो तुलसी के राम भगवान. यानि कौटिल्य के समय तक कृष्ण की गणना आर्यों के नायकों में भी नहीं मित्रों,

 इन कमेंट्स का उद्देश्य किसी की आस्था को आहत करना नहीं है. होमर-हेसिआद के महाकाव्यों का देवलोक प्राचीन यूनानी समाज की प्रतिछाया है. रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा वर्णित की दैविक-व्यवस्था मध्य युगीन यूरोपीय सामंती समाज का ही परिष्कृत  रूप है उसी तरह जैसे भारतीय पुराणोंका देवलोक, वर्णाश्रम व्यवस्था का ही परिमार्जित चित्रण है.थी जो भक्तिकाल तक पहुंचते-पहुँचते, चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से भगवान बन गए.
मित्रों! आप सब से अनुरोध है कि मेरी बातों को personally न् लें मैं हर किसी की व्यक्तिगत धार्मिकता का सम्मान करता हूँ जब तक वह साम्प्रदायिक उन्माद का रूप नहीं लेता. मेरी पत्नी अत्यंत धर्म-परायण महिला हैं और घर में भगवान का भी छोटा सा घर है जिसमें मेरा प्रवेश निषेध है. मैं अपनी पत्नी का बहुत सम्मान करता हूँ. कहने का मतलब धर्म और भगवान की अवधारणा नैसर्गिक नहीं ऐतिहासिक हैं. इति



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