ज्ञान पर किसी का एकाधिकार नहीं है, न ही कोई अंतिम ज्ञान होता है, ज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया है तथा हर अगली पीढ़ी तोजतर होती है। तभी तो हम पाषाणयुग से अंतरिक्षयुग तक पहुंचे हैं। ज्ञान की महानताओं का अतीतान्वेषण भविष्य के विरुद्ध साजिश है। हमारे पूर्वजों ने मिथकीय गल्प कथाओं को ज्ञान के रूप में स्थापित कर भावी पीढ़ियों के साथ बौद्धिक अपराध किया, फलस्वरूप जब प्रबोधन क्रांति से विज्ञान के नए अन्वेषण हो रहे थे तब हम गोबर के गणेश पूज रहे थे और पत्थर के गणेश को दूध पिला रहे थे। आज भी शिक्षा व्यवस्था के बाजारीकरण और मशीनीकरण तथा पुनर्मिथकीकरण के माध्यम से ज्ञान प्रणाली को बर्बाद कर अपनी भविष्य की पीढ़ियों के साथ अन्याय कर रहे हैं।
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