3 साल पहले मुसलमानों की बढ़ती आबादी से हिंदुओं के अल्पसंख्यक हो जाने खतरे की एक पोस्ट पर एक कमेंट।
राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि हिंदुओं की औसत वृद्धि दर के ही बराबर है. जब भी बहुसंख्यक पर अल्पसंख्यक के खतरे का हौव्वा खड़ा किया जाता है तो वह फासीवाद होता है. अरे महराज! अवधी में कहावत है कि मूस मोटाए लोढ़ा होए. कितनी भी जनसंख्या वृद्धि हो 9% से बढ़कर 90% होने में 100 पीढ़ियां लग जाएंगी. हम कुल 9 भाई-बहन थे (अब 7 हैं). मेरे मां-बाप दोनों में से कोई मुसलमान नहीं थे. मेरा एक पढ़ा-लिखा चचेरा भाई है उसके 6 बच्चे हैं, 4 बेटियों के बाद दो बेटे. उसकी पत्नी भी ब्राह्मणपुत्री है. दर-असल संघी शाखा में कदम्ताल करके, दिमाग कुंद कर लेता है और नए शगूफे नहीं गढ़ पाता. आजादी के बाद से ही अब तक हम पांच हमारे पांच का हव्वा खड़ा करता आ रहा है. गुरात चुनाव में मोदी का यह तकिया कलाम था. आपके मुसलमान मित्र तो शायद ही होंगे, लेकिन कुछ मुसलमानों को जानते होंगे, दरियाफ्त कीजिए उनकी शिक्षा-दीक्षा का स्तर क्या है और उनके कितनी बीबियां और कितने बच्चे हैं? मित्र, अभी आप युवा हैं, कहा-सुनी के आधार पर नहीं, तथ्यों और उनकी विवेक सम्मत विश्लेषण के आधार पर वक्तव्य दें, अन्यथा बौद्धिक जड़ता बनी रहेगी. विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. कम या ज्यादा बच्चे पैदा करने का संबंध हिंदू या मुसलमान से नहीं, शिक्षा और सामाजिक चेतना के स्तर पर निर्भर करता है. इवि के हमारे एक अग्रज से सीनियर (अब रिटायर्ड पीसीयस) हैं, फीजिक्स में यमयस्सी की शिक्षा के बावजूद उनकी सामाजिक चेतना मेरे मां-बाप या मेरे चचेरे भाई के स्तर की ही रह गयी. पुत्र की चाहत में 4 बेटी-बेटिय के पिता हैं. 2 बेटियों के बाद जुड़वा बेटियां हो गयीं और अंत में 5वीं संतान के रूप में पुत्र-रत्न की प्राप्ति हो ही गयी. यही बात पहले इलाहाबाद के एक ग्रुप में कह दिया था, सीनियर सर तो कुछ नहीं बोले लेकिन कई अन्य लोग लट्ठ लेकर पीछे पड़ गये कि सीनियर का असम्मान कर रहा हूं. भाई तब तो मैं अपने माता-पिता जी का भी असम्मान कर रहा हूं! विकास के चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना का विकास होता है।
2.09. 2016
2.09. 2016
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