Wednesday, September 11, 2019

बेतरतीब 48 (बचपन)

मैं तो आधुनिक शिक्षा में पहली पीढ़ी वाला हूं,पिताजी ने क्या पढ़ाई की थी नहीं जानता, इलाके के जाने-माने आदमी थे और लिखावट बहुत सुंदर थी, गुलशन नंदा, कुश्वाहाकांत किस्म के उपन्यास उनके कमरे में रहते थे। बाबा (दादा जी) पंचांग के ज्ञाता माने जाते थे, गीता और अन्य बहुत से संस्कृत ग्रंथ उनके ठाकुर (भगवान) के घर में रहते थे, नहा कर ठाकुर को भोग लगाने के बाद ही कुछ खाते-पीते थे। उनकी लिखावट के नमूने के लिए अपनी जन्मकुंडली संभाल कर रखा हूं। यह अनावश्यक फुटनोट लंबा हो गया, कहना यह चाहता था कि प्राइमरी में भाषा और गणित की ही पढ़ाई होती थी, पहाड़ा-जोड़-घटा-गुणा-भाग मुझे आसानलगता था, नंबर अच्छो आते थे इसलिए अच्छा विद्यार्थी माना जाता था, जो अच्छे बच्चे की छवि में सहायक था। सुबह 4 बजे दादा जी पढ़ने के लिए उठा देते थे लेकिन पढ़ाई के लिए कभी डांट-मार नहीं पड़ी। प्राइमरी स्कूल के बाद की कहानी बाद में।

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