इतिहास जनश्रुतियों पर नहीं तथ्यों पर लिखा जाता है। पुराण पुष्यमित्र शुंग के बाद बौद्धक्रांति के विरुद्ध ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति की दार्शनिक पुष्टि के लिए लिखे गए। वाल्मीकि राममायण (गीता प्रेस) के अयोध्याकांड सर्ग 110 श्लोक 34 में बौद्धों तथा नास्तिकों की बुराई की गयी है जिसका मतलब रामायण बुद्ध (पांचवीं शताब्दी ईशापूर्व) के बाद लिखी गयी है। युधिष्ठिर एक पौराणिक महाकाव्य के चरित्र हैं। वैदिक साहित्य (वेद तथा उपनिषद) में महाभारत के किसी पात्र का वर्णन नहीं है। बौद्ध संकलनों में भी महाभारत के पात्रों का वर्णन नहीं मिलता। कौटिल्य अपने समय तक मौजूद सभी धाराओं में शासनशिल्प का संदर्भ देकर अपनी बात कहते हैं। महाभारत का शांतिपर्व पूरा शासनशिल्प ही है, लेकिन अर्थशास्त्र में महाभारत का जिक्र नहीं है, इसा मतलब महाभारत कौटिल्य (तीसरी शताब्दी ईशापूर्व) के बाद की रचना है। त्रेता की तरह द्वापर भी जान-बूझ कर मिथकीय रखा गया है।
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