मैंने ऋगवेद संयोग से पहली बार 1978 में (जेएनयू में एमए करने के दौरान) पढ़ा। दरियागंज संडे बुक बाजार में 5 रू. में गोविंद मिश्र का बहुत ही सुंदर पद्यात्मक अनुवाद मिल गया, एक बार में ही पढ़ गया। दुबारा बीच-बीच से पलटा। बहुत आनंद आया पढ़ने में। एक मित्र पढ़ने के लिए ले गए लौटाए नहीं। 1995 में दिवि में भारतीय राजनैतिक दर्शन पर कोर्स लगा। भारत में राज्य (महाजनपद एवं संघ) का उदय वैदिक गणों के अवशेष पर हुआ, गणों का राजनैतिक अर्थशास्त्र समझने के लिए दुबारा अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा। कोर्स में राज्य का बौद्ध सिद्धांत था जो कि एक सामाजिक संविदा सिद्धांत है जिसका पहला मिथकीय जिक्र अत्रेय ब्रह्मण में मिलता है। सुर-असुर (आर्य-अनार्य) के बीच अपरिहार्य युद्ध के नेतृत्व के लिए सुर इंद्र को नेता चुनते हैं तो अत्रेय ब्राह्मण का अध्ययन किया। राज्य की उत्पत्ति का पहला सिद्धांत बौद्ध संकलन दीघनिकाय में मिलता है, जो राजनैतिक विचारों के इतिहास में राज्य की उत्पत्ति सामाजिक संविदा सिद्धांत है। एक संपादित पुस्तक के लिए इसपर मैंने एक अध्याय लिखा है पुस्तक प्रेस में जाने के बाद शेयर करूंगा। बुद्ध और कौटिल्य ( अर्थशास्त्र) के सिद्धांत अदैवीय तथा अमिथकीय हैं। कौटिल्य की राज्य की परिभाषा में दैविकता या मिथकीयता नहीं है। मनुस्मृति में राज्य की उत्पत्ति दैवीय है। मनुस्मृति का शासनशिल्प खंड तथा महाभारत के शांतिपर्व (दोनों कोर्स में हैं) में शासनशिल्प का वर्णन लगभग एक-दूसरे के कॉपी-पेस्ट हैं। ऋगवेद में प्राकृतिक देवताओं (शक्तियों) (अरुण, वरुण, इंद्र..) तथा भौतिक संसाधनों तथा कुटुंबों (कबीलों) के राजनैतिक अर्थशास्त्र तथा युद्धों के वर्णन हैं। पशुधन की प्रधानता थी तथा सोमरस ( राहुल सांकृत्यायन के अनुसार भांग का पेय) के वर्णन की बारंबारता है। बैकुंठ के किसी देवता या वशिष्ठ तथा विश्वामित्र को छोड़कर रामायण-महाभारत के किसी पात्र का वर्णन नहीं है। ऋगवेद के सातवें मंडल में दस राज्ञ युद्धः का वर्णन है। विश्वामित्र भरत कुटुंब के राजा (मुखिया) दिबोदास के पुरोहित थे। उनका पुत्र सुदास जब मुखिया बना तो विश्वामित्र की जगह वशिष्ठ को पुरोहित बना दिया। विश्वामित्र ने कुपित होकर दस कुटुंबों के राजाओं (प्रमुखों) को लामबंद कर सुदास पर हमला कर दिया। सुदास विजयी हुए। वशिष्ठ और विश्वामित्र दोनों ही भरत कुटुंब के पुरोहित हो गए। बाकी फिर कभी।
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