Sunday, September 8, 2019

लल्लापुराण 274 (चेतना)

चेतना भौतिक परिस्थियों (समाजीकरण)का परिणाम है, बदली चेतना बदली परिस्थियों का। परिस्थितियां अपने आप नहीं बदलतीं, न्यूटन के गति के नियम के अनुसार, उनपर वाह्यबल की जरूरत होती है। परिस्थितियां चैतन्य प्रयास से बदलती हैं। चेतना और भौतिक परिस्थितियों में द्वद्वात्मक संबंध है। मैं वर्णाश्रम संस्कृति के दिनों में एक कर्मकांडी ब्राह्मण परिस्थितियों में पला-बढ़ा, मेरी चेतना विशुद्ध ब्राह्मणवादी थी। 10 साल की उम्र में,1965-66 में 8 किमी की मिडिल स्कूल की यात्रा में अपने से शरीर में डेढ़ गुना एक धोबी सहपाठी ने थोड़ी दूर मेरा झोला ढोने से इंकार कर दिया था, मैंने उसे मारने के लिए बेल्ट निकाल लिया। उसने हाथ पकड़ लिया, यानि मार खाने सो इंकार कर दिया। बाप रे! इतना अपमान!! मैं रोता हुआ घर गया, दादा जी आधी बात समझे और हंगामा कर दिए। बाकी क्या हुआ फिर कभी। उसके बाद की बदली परिस्थितियों ने चेतना बदलना शुरू किया, 6 साल बाद इलाहाबाद पहुंचने तक मैं जाति-पांत से ऊपर ऊपर उठकर विशुद्ध इंसान बन गया था। क्षमा कीजिएगा उत्तर आत्मकथात्मक हो गया।

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