Tuesday, December 1, 2015

आज का फैसला

आज का फैसला
दोस्तों!
 आज मैंने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है
मानने की हिदायतें उम्र के खयाल की
और नसीहतें बुज़ुर्गियत के लिहाज की
तथा छोड़ने की अक्सर भूल जाने की आदत
कि बीस साल का मैं चालिस साल पहले था
जब भी कुछ भी कहता हूं 
इन नसीहत-हिदायतों की हो जाती है भरमार 
नसीहत-हिदायतें तब भी मिलती थीं
था जब दाढ़ी पर काला खिजाब
कहा जाता था तब करने को औरों की बुज़ुर्गी का लिहाज
चढ़ना शुरू हुआ दाढ़ी पर जब से सफेद खिजाब
उलट गई नसीहत-हिदायतों की धार
मिलने लगी अपनी बुजुर्गियत के लिहाज की नसीहतें बेहिसाब
नहीं मानता था इन्हें तब
जैसे नहीं माना अबतक अब

लेकिन दोस्तों!
आज मैंने ऐतिहासिक फैसला लिया है
मानने की ये नसीहत-हिदायतें
अब की तुरंत प्रभाव से और तब की बैक-डेट से

नहीं कहूंगा गोरक्षा के नाम पर उत्पातियों को आतंकवादी
आतंकवादी को आतंकवादी कहना किसी को बुरा लग सकता है
नहीं कहूंगा रोहित की खुदकुशी को शहादत
शहीद को शहीद कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
नहीं कहूंगा बंदेमातरम् की हुंकार के साथ असहमति पर हिंसक हमले को लंपटता
लंपट को लंपट कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
न ही कहूंगा संविधान की धज्जियां उड़ाने वालों को देशद्रोही
देशद्रोही को देशद्रोही कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
न ही संविधान के रखवालों को देशभक्त कहूंगा

बुरा को बुरा न कहूंगा न ही अच्छे को अच्छा
अच्छे को अच्छा कहना भी तो
किसी को बुरा लग सकता है
कोई बात नहीं कहूंगा जो किसी को बुरी लगे
अच्छी लगने वाली बात के साथ भी नहीं करूंगा पक्षपात
वह भी तो किसी बुरी लग सकती है
आज मैँ सिर्फ वही कहूंगा
जिससे किसी को कोई फर्क नह पड़े
न ही जिसका कोई मतलब हो
आज मैंने फैसला लिया है
करने का ख्याल उम्र का
और रखने का बुज़ुर्गियत का लिहाज
लेकिन यह फैसला आज का है
कल की कोई गारंटी नहीं
क्योंकि परिवर्तन के सिवा नहीं होता कोई साश्वत सत्य
हो सकता है कल को मुझे फिर से लगने लगे
कि उम्र के चालिस साल के फर्क को भूल जाना
वक्त से पीछे नहीं बल्कि आगे होना हो
और मैं रद्द कर दूं यह फैसला
(बस ऐसे ही एक और बौद्धिक आवारागी)
(ईमिः02.12.2015)

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