Friday, December 25, 2015

मार्क्सवाद 21

लिबरेसन की एक कॉमरेड की जेपी तथा छात्र आंदोलन को खारिज करती एक पोस्ट पर कमेंटः

कॉमरेड, मार्क्स ने कहा है कि जनता के प्रोग्राम अलावा कम्युनिस्ट का कोई अपना प्रोग्राम नहीं होता नहीं होता. संचित तथा पनपते युवा आक्रोश से अनभिज्ञ, खुद को नक्सलबाड़ी का वारिश समझने वाले हम लोग दीवारों पर "सत्तर का दशक मुक्ति का दशक" के हवाई नारे लिखने में मशगूल, चौराहे तक पहुंच चुकी क्रांति का इंतजार कर रहे थे. सीपीआई ब्रजनेव-इंदिरा संबंधों की प्रगाढ़ता के हित में स्वस्फूर्त छात्र आंदोलन को सीआई समर्थित फासिस्ट आंदोलन बता रही थी, सीपीयम तटस्थ थी. हम सबने मिलकर मैदान लोहियावादियों तथा विद्यार्थी परिषदियों के लिए ठोड़ दिया. नेतृत्व के निर्वात को भरने की हमने कोशिस नहीं की तथा राजनैतिक रूप सेअप्रासंगिक हो चुके दिग्भ्रमित जेपी को मौका मिल गया लोकनायक बनने का. जब हमें स्वस्फूर्त आंदोलन में हस्तक्षेप करना था, हम आपसी गुटबाजी तथा माओ का पुतला फूंकने निकले संघी जुलूस पर बम फेंकने की असफल कोशिसें जैसी बचकानी, आत्मघाती हरकतें  कर रहे रहे थे.  फ्रांस की कम्यनिस्ट पार्टी ने यदि 60 के दशक के क्रांतिकारी छात्र आंदोलन को स्वस्फूर्त कर खारिज करने की बजाय हस्तक्षेप किया होता तो वह यूरोप के इतिहास का निर्णायक बिंदु हो सकता था मगर प्रेरणा-श्रोत बन कर रह गया. कॉमरेड मार्क्सवाद की एक प्रमुख अवधारणा है आत्मालोचना , जिसे पार्टीलाइन की दैवीय पवित्रता के चक्कर में दुनियां की सभी कम्युनिस्ट पार्टियां लगभग भूल चुकी हैं. पिछले 30-35 सालों में नेपाल के अपवाद को छोड़कर सभी चुनावी पार्टियों की आर्थिक (संख्या बल) तथा राजनैतिक (जनबल) रसूख घटा है. नेपाल मे जनतांत्रिक आंदोलन की सफलता के बाद दिल्ली में भूमिगत सीपीयन (एमाले) के मित्र कॉमरेडों का नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार में प्रमुख मंत्रालयों का प्रभारी बनने के बाद लगा था कि संवैधानिक जनतंत्र के जरिए भी क्रांति की दिशा में बढ़ा जा सकता है. चंपावत (उत्तराखंड) के सरकारी डिग्री कॉलेज में एक सेमिनार में शिरकत करने के बाद अपनी याम्हा आरयक्स 100 बाइक में लौटते हुए, विशाल शारदा के किनारे फारेस्ट गेस् हाउस, टनकपुर में रात बिताने के बाद शारदा पार कर नेपाल की धरती पर पैर रखने का मन हुआ तथा सुबह टंकी फुल कर शारदा पार कर लिया तथा ऩजदीकी कस्बे में चाट पीकर लौटने का मन हुआ. चाय पीते हुए नेपाल के मंत्री मित्रों से मिलने का मन हुआ. बाप रे, कांग्रेसियों से भी ज्यादा ताम-झाम. कॉ. द्रोण प्रसाद आचार्य से दिल्ली में विमर्श से बहुत प्रभावित था, वे गृहमंत्री थे. राजशाही के सवाल पर बोले अभी सही वक़्त नहीं था. नौकर-चाकर, शानोशौकत. महंगी शराब. अच्छा खाना-पीना किसको अच्छा नहीं लगता. मुझे मार्क्स की नहीं रूसो की याद आई जो कहता है कि ऐशो- आराम भ्रष्टाचार का मूल है. मॉफ करना कॉमरेड जेपी को निरस्त  करने की आपकी भाषा मार्क्सवादी न होकर संघी लग रही है. मार्क्स अपने विरोधियों को बौद्धिकता के इतिहास में उनके योगदान का संज्ञान लेते हुए सम्मान से खारिज करते थे. जेपी का राष्ट्रीय आंदोलन में अहम भूमिका रही है. मैं उस पर एक लेख लिखने की सोच रहा हूं (जो सोचता हूं सब कर पाता तो क्या बात थी). गांधी ने हरिजन में लेख छापा जिसमें कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (अवैध घोषित कम्युनिस्टों को भी सदस्य के रूप में प्लेटफॉर्म मिल गया. नंबूदरीपाद सेक्रेट्रियेट में थे) को इंगित करते लिखा “….. Some young Congressmen and women are indulging into loose talks of class war. ……” जेपी ने जवाब दिया, “war is already on, the question is of taking sides.”  गांधी ने जेपी का जवाब भी हरिजन में छापा. डांगे अगर आजादी के बाद के बाद के दिनों में कांग्रेस के समर्थक हो गये तो इताहास में उनकी क्रांतिकारी भूमिका को नहीं खारिज किया जा सकता. मार्क्सवाद पर स्टडी सर्कल्स पर जोर देने की जरूरत है. दुनिया की कम्युनिस्ट पार्टियां भूमंडलीकरण के गतिविज्ञान को समझने में असमर्थ सिद्धांत के संकट से गुजर रही हैं. सोचा था 2-4 वाक्य के कमेंट का, हो गये 623 शब्द.   

No comments:

Post a Comment