Sunday, December 20, 2015

बेतरतीब 4

 (अधूरा)

शुक्रिया अरुण जी, 2011 से 18-19 दिसंबर को कुछ लिख ही नहीं पाता, आज शायद जीवन में पहली बार बगीचे में बैठकर (सेवा-निवृत्ति के बाद बस बगीचे की ही कमी खलेगी) दिन भर सरोजजी (मेरी पत्नी) से दिन भर बातें करता रहा. 2 दिन से अदम को एक श्रद्धांजलि लिखने की कोशिस में हूं. विद्रोही के निधन के बाद एक कविता में श्रद्धाजलि के बाद से ही  अदम तथा खुर्शीद की बेतरतीब यादें अवसादित करने लगीं कि मस्तिष्क उंगलियों को निर्देश देने में असमर्थ हो जाता है, पार्टी लाइन वाली एक कॉमरेड की एक पोस्ट से मुझे दाढ़ी में तिनके की अनुभूति हुई और इस पार्टी कि एक परिचित राष्ट्रीय नेता ने कलबुर्गी की हत्या के विरुद्ध लेखकों की सभा में पहचाना नहीं. किसी ने खुर्शीद के साथ मेरी तसवीर शेयर किया था. फेसबुक खोलते ही दिख गयी. तीऩों घटनाओं की आपसी रासायनिक क्रियां ने मेरे अंदर एक अभूतपूर्व आत्म-भय तथा आत्म-अविश्वास के भाव पैदा कर दिया.  तुरंत मैंने अपने आप से कहा, कि मैं आत्महत्या नहीं करूंगा, कुछ भी हो जाय, फिर खुद से कहा, कि ऐसी बात दिमाग में आई ही क्यों?  ब्राह्म मुहूर्त के एकांत में आंसू स्वायत्त हो चले.  मैं हमेशा अतिनिर्भयता, अतिआत्मविश्वास, दुस्साहस जैसी अतियों का शिकार रहा हूं. इन रोगों ने फिर से जकड़ लिया है. हा हा अपनी स्टूडेंट फ्रेंडस का आजीवन आभारी रहूंगा जिनसे मैने शेयर किया. बेटियों से नहीं किया कि वे इलाहाद पहुंच जातीं. वे मेरी बेस्ट फ्रेंड्स हैं."इससे अच्छा इसका बाप ही था " कहानी की लिप्पी के चरित्र का अमूर्तन एक बेटी से किया है. ददोनों मेरी फेसबुक मित्र भी है.मनाता हूं वे इस कमेंट को न पढ़ें नहीं तो सर फोड़ देंगी,"बेटियों को बेटी क्यो बना दिया?" लेकिन अब तो ओखली में सिर जा चुका है. मेरा दिमाग भी अजीब है. कभी तो उंगलियों को निर्देश देने से इंकार कर देता है तो कभी बंद ही नहीं करता बेतरतीब निर्देश देना. इसमें मैं कुछ कर भी नहीं सकता. मैंने जाने-अनजाने तथाकथित अनुशासनहीनता को प्रोत्साहित किया है जिसे मैं असाध्य दुर्गुण मानता हूं. सोचा था, शुक्रिया लिखकर 4 दिन से लंबित अदम पर लेख लिखूंगा लेकिन कमेंट फुटनोट की जगह बेतरतीब-4 बनता जा रहा है.लेकिन 12 बजे बेटी को लेने हवाई अड्डा निकलने के पहले अदमजी पर लेख की शुरुआत के प्रति दृढ प्रतिज्ञ हूं. वैसे बहुत सी दृढ़ प्रतिज्ञाएं टूटती रही हैं.

आत्म-अविश्वास का आलम ये था कि सोचने लगा  मैं तो 60 साल मित्रों तथा सटूडेंट्स की बिना शिकायत के बेदाग बिता देने, खुद को प्रतिबद्ध नारीवादी मानने तथा बेटी द्वारा अपने TISS application में विषय में रुचि के आत्मकथात्मक विवरण में ... my father being a practising feminist की सनद के बावजूद मेरे आचार का कोई अमूर्त  पहलू हो जिसका मुझे पता नहीं चलता और बच्चियां लिहाज में कहती न हों. वैसे मेरी स्टूडेंट्स भी मेरी ही तरह लिहाज-विहाज नहीं करते. मैंने सोचा लडकियां ताकने की कोई प्रवत्ति होगी तो सबसे ज्यादा एहसास उन लडकियों को होगा जिन्होने मेरे साथ सबसे अधिक समय बिताया है. इमा (मेरी छोटी बेटी) की पहली मिस्ड कॉल का चाय से जवाब देकर 5 बज झोपडी में चाय लेकर बैठा था कि एक और मिस्ड क़ाल. मैं अनायास अनजान भय से घबरा गया कि देखने की हिम्मत नहीं हुई. सोचने लगा कि सुबह होने पर मैं अपनी कुछ पुरानी स्टूडेंट दोस्तों से बात करूंगा. मुझे तमाम अध्यापकों पर तरस आता है जो सत्ता की खुशफहमी में श्रेणीबद्धता के जाल में जकड़े अपने को विद्यार्थियों से इतर ग्रह का समझते हुए टेंसन सिंह बने रहते हैं. जब से कैंपस में रहने लगा तब से बच्चों ने मेरे घर को खाला का घर समझ रखा है. देखिए फिर भटक गया मुख्य कहानी से. तभी लंदन के कोड वाला फोन आया उठाऊं-न-उठाऊं की असमंजस में कट गया. उसी नंबर से कई मिस्ड क़़ॉल आए. मैं पता नहीं क्यों डर गया. इमा दूसरी चाय का आदेश देने आई (वह कभी आदेश देती है कभी आग्रह करती है), बोली कि कोई मिस्ट कॉल देकर मुझे छेड़ रही है, उसके चक्कर में न पड़ूं तथा बेटी को दूसरी चाय पिलाने का फर्ज अदा करूं. तब तक उसी नंबर से यसयमयस  था, अपनी बैच की मेरी सबसे अच्छी दोस्तों में. हर बैच में कुछ अच्छे दोस्त बन जाते हैं, मार्क्सवादी तथा नास्तिक भी. नीलांजना तथा सास्वत अपनी अपने बैच के सबसे अच्छे दोस्त हैं. दोनों एक दूसरे से प्यार भी है (शायद). नीलांजना साउथ एशिया यूनुवर्सिटी से एक मास्टर करने के बाद कग्स कॉलेज लंदन से दूसरा मास्टर्स करने गयी है. सास्वत टिस से मास्टर्स करके अपरेंटिस कर रहा है. नीलांजना ने स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट में अपनी सिरकत तथा  बताने के लिए फोन किया था कि उसे कोई स्कॉलरशिप मिल गयी है तथा अब मिस़् कॉल नहीं देगी. मैंने उससे पूछा कि मेरे कंडक्ट में उसे कोई फ्लर्ट करने की प्रवृत्ति नोटिस किया उसने मेरा कोई एक क्लास का वक्तव्य उधृत कर कहा के उस समय वे सब वाट्सअप पर मेरे किसी डॉयलॉग से फ्लर्ट कर रहे हैं. विस्तार यह कि जिन दोस्तों का फोन आया सबसे यही सवाल किया. सबने ऐसे विचार मन में आने का मजाक बनाया. मैं तब भी आश्वस्त नहीं हुआ. अंत में मैंने पिछले बैच की 3 सबसे अच्छे दोस्तों -- शीतल, राहुल, पल्लवी -- में शीतल को फोन किया, मनोदशा पर हैरान थी तथा अगले दिन मिलने को कहा.राहुल टिस में है, उसका नंबर नहीं मिला. शीतल दिवि में यमए कर रही है पल्लवी जेयनयू से. पल्लवी ने मेरा फोन नहीं उठाया मुझे लगा पार्टी लाइन का तो असर नहीं हुआ मैंने उसका नंबर डिलीट कर शीतल को बता दिया. दोनों बिन बताये आ टपकीं, पल्लवी ने पहुंचते ही कहा कि इमादी वाला (घूसा)  दे देगी तथा दे ही दिया. मुझसे चिपक कर रो पड़ी. दोनों 2 घंटे साथ थे. धन्यवाद, शीतल, पल्लवी बता नहीं सकता विदा होते धन्यवाद कहने पर तुमने जब कहा सैड रहने पर भी कुछ सिखा देता हूं, कितना अच्छा लगा था कह नहीं सकता.

आत्महत्या को पलायन मानता हूं. पहले पलायन के साथ कायरतापूर्ण जोड़ देता था. गोरख पांडेय की शोकसभा से यह विशेषण हटा दिया. उस सभा में आत्महत्या को बहादुर बताने वाली नामवर जी बात बहुत बुरी लगी थी. खुर्शीद के चरित्रहनन में भक्तों के साथ पार्टी लाइन का भी योगदान रहा है. मैं पार्टीलाइन को धार्मिक भक्ति भाव से भी खतरनाक भक्तिभाव मानता हूं. मैं सोवियत संघ  के पतन के पहले से ही पार्टी लाइन की अवधारणा को गैरमार्क्सवादी नहीं, मार्क्सवाद-विरोधी है. मार्क्सवाद समालोचनात्मक सेमझ का हिमायती विज्ञान है तथा पार्टी लाइन सोच को संकुचित करने का विधान. समालोचनात्क तथा आत्मालोचनात्मक समध से ही वर्गचेतना पैदा होगी तथा सामाजिक चेतना का जनवादी करण होगा, पार्टी लाइन से नहीं. इसीलिए मैं जब तक कोई मार्क्सवादी भूमंडलीय संगठन नहीं बनता तो मैं लेनिन की भाषा अकम्युनिस्ट ही मरूंगा. मैं सोचने लगा जब मैं इतने से तिनके से मैं इतना अवसादित हो गया तो महीनों के चरित्रहनन से खुर्शीद की क्या मनोदशा रही होगी. अब और लिखने का मन नहीं. इसे बाद में विस्तार दूंगा. एक चाय बनाकर अदम जी लेख शुरू करने की कोशिस करता हूं. एयरपोर्ट के लिए निकलने में एक घंटा है. देखता हूं.

No comments:

Post a Comment