Arun Maheshwari जी, राजनीति तथा समाज की पैनी समझ के साथ सधी हुई, सटीक तथा प्रासंगिक कविताएं लगातार लिखना बहुत मुश्किल है.एक बार शरद जोशी के प्रतिदिन के किसी कॉलम पर एक मित्र कि प्रतिकूल टिप्पणी पर मैंने कहा था कि एक व्यंग्य लिखना मुश्किल होता है तथा प्रतिदिन उसी गुणवत्ता से व्यंग्य लिकना कितना मुश्किल है. सरला जी साधुवाद की सुपात्र हैं. मैं तो विशेष आभारी हूं उनका क्यंकि मेरी कई कविताएं उनकी कविताओं से प्रेरित है. इस पर तो पद्यात्मक कमेंट का मन था लेकिन 3-4 दिन से अदमजी की बहुत याद आ रही है. आज उनकी पुण्यतिथि है. कविता में श्रद्धंजलि देना चाहता था लेकिन नहीं लिख पा रहा हूं. अदम जी ने मुझे अपने अंदर कवि के पुनर्अन्वेषण को बाध्य किया. मार्च 2011 में केपी मौर्य के साथ समय से मुठभेड़ देने आये. बातचीत में किसी बात पर मैंने कहा मान्यवर आपका कोई भी आदेश सर आंखों पर. उन्होने कहा मुकरियेगा मत. आदेश दिया कि मजदूरों तथा स्टूडेंट्स के लिए पद्य में ऐतिहासिक भौतिकवाद पर पुस्तिका लिखूं.यमए तक कुछ तुकबंदियां करता था, साहित्य के विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया से लगा, बुरी कवितायें लिकता हूं. बंद करदिया. अकवि होने का तर्क उन्होंने काट दिया. जेयनयू के दिनों में एक मुलाकात में कोई कविता सुनाई थी उसके हवाले से कामचोरी का बहाना बंद कर लिखने की शुरुआत किया. सिद्धाम तथा आदिम साम्यवाद के दो खंड 2011 में ही हो गया, उसके बाद उस फाइल पर नहीं बैठ पाया. जल्दी ही पूरा करूंगा. शुभकामना कीजिये. हा हा
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