Wednesday, December 16, 2015

ईश्वर विमर्श 39




 कोटिल्य के अर्थशास्त्र में वैदिक धर्म यानि वर्णाश्रम की रक्षा राजधर्म का हिस्सा  है. राम-श्याम ब्रह्मा-विष्णु किसी का कोई जिक्र नहीं है. बिजीगिसू (राजा)  को कौटिल्य सलाह देता है कि विजय अभियान पर निकलते समय राजा को आशिर्वाद के लिए देवताओं तथा विपत्तियों से बचने के लिये दानवों की अर्चना करनी चाहिये. देवताओं में, वैदिक प्राकृतिक देवताओं -- अरुण, वरुण. इंद्र, अग्नि की बात करता है किसी ब्रह्मा-विष्णु-महेश या शेरा वाली या त्रिसूलवाली का जडिकर नहीं है. दानवों कंस तथा कृष्ण को एक ही कोटि में रखता है. यानि कृष्ण को अनार्य मानता है. उसीके समकालीन मेगस्थनीज कृष्ण को सूरसेन क्षेत्र - मथुरा का किंवदंतियों के स्थानीय नायक के रूप में चित्रित करता है. वैसे जब विष्णु ही नहीं था तो उसके अवतार कहां से होंगे. मेरा इस पर कोई अध्ययन तो नहीं है लेकिन परिस्थितिजन्य तथ्य-तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि बैकुंठलोक के दूत के नारद पुराणों की रचना तथा मूर्तिपूजा की शुरुआत या तो शुंगकाल में हुई तथा कुशान शासन में कर्मकांडी ब्राह्मणवाद रक्षात्मक रहा तथा गुप्तकाल में इसका पुनरुद्धार तथा प्रसार हुआ.

No comments:

Post a Comment