Tuesday, December 1, 2015

क्षणिकाएं 54(751-60)

751
लाजिम है हम भी देखेंगे
जब मेहनतकश परचम लहराएगा
फिरकापरस्ती का दानव छूमंतर हो जाएगा
राष्ट्रवाद का कॉरपोरेटी चेहरा बेपर्दा हो जायेगा
छात्रों में जब ऐसा इंकलाबी जज्बा आएगा
इंकलाब के नारोॆ से तब चप्पा-चप्पा गूंजेगा
गोबर के इन गणेशों को कोई भी नहीं तब पूजेगा
हर शहर हर गांव में हिरावल दस्ता घूमेगा
औ ज़ुल्म की परतें खोलेगा
जालिम का सिंहासन डोलेगा
दुनिया के हर गुंबद पर लाल लाल लहराएगा
हम देखेंगे
लाजिम है हम भी देखेंगे
(बस ऐसे ही, फैज के साथ कलम का मॉर्निंग वाक)
(ईमिः10.11.2015)
752
एक ये हैं कि शर्म इन्हें आती नहीं
एक वो है कभी तक्षशिला को बिहार मे ला देता है 
तो कभी चंद्रगुप्त को सिकंदर से लड़ा देता है
 कभी सम्राट अशोक को कोइरी बता देता है
तो कभी बिहार डीयनए की बात करता है
उसका नायब भी लाजवाब है
वह बिहार ही पाकिस्तान भेज देता है
भूगोल का य़े इल्म इन्हें विरासत में मिला दिखता है
इनका एक पूर्वज तो इससे भी बड़ा कमाल करता है
इस गिरोह में वह गुरू गोलवल्कर के नाम से जाना जाता है
प्राचीनकाल में जो उत्तरी ध्रुव को बिहार व उड़ीसा पहुंचा देता है
जब जब वह हज करने अमरीका जाता है
ऐसे ऐसों क आगे झुकता गिड़गिड़ाता है
जो रोज ही गोमांस खाता है
बिहार का चुनाव जब आता है
गोभक्षण की अफवाह से मुसलमान एक मरता है
 वह गाय की पवित्रता को चुनावी मुद्दा बनाता है
वैसे तो चतुरचालाक है सद्बुद्धि को धिक्कारता है
अहंकार के कारण यह बात भूल जाता है
काठ का हंडा चूल्हे पर दुबारा नहीं चढ़ता है
एक ये हैं कि शर्म इन्हें आती नहीं.
(बस यूं ही)
(ईमिः 10.11.2015)
753
करता हूं हिमाकत भरने को ऐसी उड़ान
सीमा न हो जिसकी कोई भी आसमान
मगर रहता है सदा यह ध्यान जरूर
ओझल न हो आंखों से धरती का नूर
(ईमिः 16.11.2015)
754
इंसानियत के दुश्मन भेष बदल कर आते हैं
कभी आईयसआईयस तो कभी आरयसयस कहलाते हैं
करते हैं धरती लहूलुहान और नफरत की फसल बोते हैं 
करते हैं कत्ल इंसानियत का और धर्मध्वजा फहराते हैं
कोई अल्लाह की तो कोई राम की मर्जी इसे बताते हैं
बनाकर इंसानों को बौना राष्ट्र महान बनाते हैं
असहमति को  मजहब से गद्दारी करार देते हैं
होते जब सत्तासीन तो उसे राष्ट्रद्रोह की संज्ञा देते हैं 
भेजने लगा जबसे मशीहे या लेने लगा खुद अवतार
हो गई इतिहास में मशीहा-अवतारों की भरमार
एक तरफ है चंगेज-मुसोलिनी-हिटलरों की कतार 
करने को पूंजी की पूजा और मजहब का प्रचार
मूंजे-मौदूदी, गोलवलकर-ओवैसी आते रहे हैं लगातार 
लिया हिंदुस्तान में प्रभु ने अब कल्कि अवतार
बचेगा न कोई करता जो हिंदुत्व को शर्मशार
जैसे इस्लाम के दुश्मनों को रही आईयसआईयस मार
लेते प्रभु जब किसी राष्ट् का अवतार 
कंधे पर होता उनके सभ्यता का भार
बधता असभ्य इंसान लूटता उनका देश
देता सारी मानवता को नई सभ्यता का संदेश
लेता प्रभु जब संयुक्त राज्य का रूप 
मुक्त करता राक्षसी कब्जे से तेल के कूप  
रक्षसों को खोज-खोज कर मारता है 
स्कूल-अस्पतालों पर भी बमबारी करता है
आतंकवाद की संभावनाओं को नेस्तनाबूद करता है
इंसानियत जब ईशद्रोह पर उतर आती है
मशीहा-अवतारों की हिटलिस्ट में आ जाती है
मेरी हिटलिस्ट में हैं सारे मशीहा ओ अवतार
लगाता हूं खात्मे को इनके आवाम की गुहार
(बस  ऐसे ही, सुबह-सुबह कलम की आवारगी)
(ईमिः 17.11.2015)
755

स्वर्ग से अशोक सिंहल का सहिष्णुता पर बयान
(विधर्मियों के खिलाफ नफरत फैलाने के पुण्य वाले को तो स्वर्ग ही मिलेगा)
मचा दिया कवि कलाकारों ने असहिष्णु हाहाकार
मारा भक्तों ने जो कुछ नास्तिक सुन प्रभु की पुकार
कर रह थे जो भगवान राम की महिमा को नकार
खत्म हो गया था जिनका जीने का मौलिक अधिकार
बचे कवि-कलाकारों में आ गया असहिष्णुता का विकार
देशद्रोह में बहकर लौटाने लगे सब अपने अपने पुरस्कार
हमारी सहनशीलता तो है अनंत और अपार
वरना सहते हम कभी राष्ट्र का ऐसा तिरस्कार
बुद्धजीवियों की कमी नहीं होने देंगे हम हिंदु राष्ट्र में
खोल दिए हैं बत्राजी ने कारखाने गुजरात व महाराष्ट्र में
मार दिया जो गफ़लत में भक्तों ने एक अख़लाक़
कर सकता था जो किसी गोमाता को कभी हलाक
बुद्धिजीवियों ने इसे  असहिष्णुता की मिशाल बताया
ऐसा कर उनने गोमाता के प्रति अपमान जताया
गोमाता का है राष्ट्र में निज माता सा सम्मान
मारना पड़े चाहे कितने भी नास्तिक-ओ-मुसलमान
होते न हम अगर अतिशय सहनशील
जिंदा रहता एक भी गो-द्रोही जलील?
असहिष्णु हैं अाप सब कवि-कलाकार
हमारी सहिष्णुता को रहे जो ललकार
सह नहीं सकते देशभक्ति की जरा मार
इनको है शाखा की दीक्षा की दरकार
तब समझेंगे कितने खतरनाक होते मुसलमान
रहते हैं यहां रखते हैं मक्का में अपना ईमान
जीतता है क्रिकेट में जब भी पाकिस्तान
पटाखे छोड़ने लगता है हर मुसलमान
होते न हम अगर सहिष्णुता के प्रहरी महान
कैसे पनपते मुल्क में शाहरुख-ओ-आमिर खान
बनते हैं ये नायक हिंदुस्तान में
मगर इनका दिल रहता पाकिस्तान में
सहते हैं मुल्क में हम कितने हिंदु-द्रोही अदीब
आरयसयस को आईयस कहते इरफान हबीब
तलवार से कायम होती थी जब सल्तनतें
जंग में भी हमारे पूर्वज सहिष्णुता दिखलाते
उठा कर फायदा शूर-वीरों की सहनशीलता का
मुसल्लों ने फहराये परचम अपनी वीरता का
सहते रहे हम सैकड़ों साल धर्म का अपमान
राज करते रहे हम पर विधर्मी मुसलमान
निकल गयी हाथ से शासन की छोर
छोड़ा नहीं हमने मगर वर्णव्यवस्था की डोर
रहे हम सैकड़ों साल  गुलामी के प्रति सहनशील
मगर धर्म की सुचिता को न होने दिया पतनशील
ब्रह्मा ने बनाया है जिसे जिस काम के लिए
करना है उसे वही हिंदु धर्म के सम्मान के लिेए
बढ़ गया धर्म पर जब इस्लामी अत्याचार
अंग्रेजों को भेजा प्रभु ने बनाके खेवनहार
बुद्ध की तरह कुछ हिंदुओं ने की धर्म से गद्दारी
धर्मनिरपेक्ष बन अंग्रेजों से सत्ता हथिया ली
झंडे पर रखा निशान अशोक की लाट का
रंग-ढंग नहीं था ये किसी हिंदू सम्राट का
प्रभु ने हमारी प्रार्थना दुबारा सुन ली
भेज दिया दिल्ली गुजरात का नरेंद्र मोदी
दिल्ली की गद्दी पर हुआ पहला हिंदू शासक विराजमान
इसके पहले अंतिम थे सहनशाल पृथ्वीराज चौहान
(लंबी बौद्धिक आवारागर्दी करवा दी सरला जी की फैज कीः चली है रश्म कि कोई न सर उठा के चले - की याद दिलाती सटीक राजनैतिक टिप्णी ने. नागार्जुन कविता लिखने को बौद्धिक आवारागर्दी कहते थे, सठियाने के बाद भी न शारीरिक आवारागर्दी कम हो पा रही है, न ही बौद्धिक)
(ईमिः26.11.2015)
756
बदलना होगा ओस को अपना स्वभाव 
टिकने का कांटों की नोक पर
सहज क्षैतिज्य विस्तार के लिए
वैसे ही जैसे स्त्री को छोड़ना होगा
हर क्षण समझौतों की आदत
एक सर्जनशील इंसान बनने के लिए
(ईमिः27.11.2015)
757
वह बहुत नज़ाकत से रहता है
दिन में कई बार कपड़े और कौल बदलता है
देश में मनाता है गांधीबध के लिए गोडसे बलिदानदिवस
लंदन में गांधी की कसमें खाता है
जब वह देश में होता है बुद्ध को बताता है धर्मद्राही
विदेश में उनकी विरासत की दावेदारी करता है
चुनाव के पहले कालेधन की बात करता है
चुनाव के बाद इस बात को चुनावी जुमला बताता है
और भी नज़ाकते हैं इस बाजीगर के
आरक्षण को विकास में बाधा मानता है
चुनाव अंबेडकर को मशीहा बताता है
(बस ऐसे ही)
758
मौत है एक अवश्यंभावी अनिश्चितता \
जिंदगी एक खूबसूरत ठोस सच्चाई
डरना क्यों उस बात से
घटती है जो अक्सर अकस्मात
इसीलिए जीना तो कला है
रंग भरने की ज़िंदगी की हक़ीकत में
मरने में नहीं है किसी का अपना हाथ
कहां से आ गयी मरने की कला की बात
जब तक विधा खुदकुशी का कायरतापूर्ण पलायन न हो
जो कला तो नहीं प्रहसन है कला की
(बस ऐसे ही )
759
बोलता जय भारतमाता की
सेवा करता अमरीका की
करता सियायत पवित्र गोमाताकी की
इबादत गोभक्षी अंग्रेज भाग्यविधाता की
कहता धरती को भी यह माता ही
नीलामी से उसकी कभी अघाता नहींत
चलाता बहू बेटी बचाने का अभियान
ऑनरकिलिंग में मारता अपनी संतान
करता है प्यार की आज़ादी की बात
प्रेमी हो विधर्मी तो होता लव जेहाद
कहते हैं धरती के सब इंसान समान
राष्ट्रभक्ति में मारते जब मुसलमान
करनी-कथनी के विलोमानुपात ऐसा कमाल
है सभ्यता के दोगलेपन की अनूठी मिशाल
(बस ऐसे ही)
(ईमिः01.12.2015)
760
जब तलक धडकन है दिल में
डूबने की बातें न कर
जब तलक बाजू में दम है
किस्मत को दरकिनार कर
हौसलों की बुलंदी से
साहिल की तू  फिर से बातें कर
बंद कर रोना नसीब का
करकरपतवार पर मजबूत पकड़
मात दो तूफान को
बढ़ो मझधार का सीना चीर कर
ज़िंदगी ताकत से नहीं हिम्मत से जियी जाती है
जियो ग़म को जश्न में तब्दील कर
जब तलक दम है कलम में
हार की बातें न कर

(ईमिः02.12.2012)

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