Vinod Shankar Singh प्रणाम सर, अद्भुत इतिहासबोध है आपका, "प्रधान मंत्री द्वारा पाकिस्तान के ऊपर से गुजरते समय लाहौर मे उतरना और नवाज़ शरीफ से मिलना एक ऐसा साहसिक कदम है जिसकी मिसाल हिंदुस्तान के कूटनीतिक इतिहास मे नहीं मिलती".संघी शब्दावली में शायद दोगले को साहस का लाहौर नहीं. देखा वो जन्म्या ही नहीपर्याय. हम तो लगातार कह रहे हैं जिनने लाहोर नहीं देखा जन्म्या ही नहीं.मोदीजी तथा बजरंगियों का अस्तित्व ही पाकिस्तान तथा मुसलमानों के विरुद्ध नफरत तथा मुलमानों तथा ईशाइयों पर हमलों के धर्मोंमाद पर टिका है. मोदीजी तथा उनके तमाम जाहिल, अपराधी मंत्रियों के चुनावी भाषणों की सीडी देखिये. जो मोदी गोली टोपी पहनने में अपमान समझता है वह ओबामा के आदेश तथा अडाणी के व्यापारिक हितों की खातिर एक मुसलमान के पांव छूता है. आपकी गलती नहीं है इम्तहान पास करने के लिए गणित के मशीनी ज्ञान के साथ भ्रष्टाचार से ओत-प्रोत नौकरशाही के पुर्जे के रूप में जीवन खपा देने के बाद पूर्वाग्रह-मुक्त दिमाग लगाले की आदत छूट जाती है। वैसे यह आदत तो बिना समझे नमस्ते सदा वत्सले.. के जाप तथा हिंदू युवकों बढ़ते जाना जैसे बेहूदे गीतोंं की आरती से ही क्षीण हो जाती है. मनुष्य की 2 विशिष्टताएं उसे पशुकुल से अलग करती हैं -- विवेक(दिमाग का इस्तेमाल तथा अंतरात्मा. भक्त अंतरात्मा.गणवेश के पास गिरवी रख देता है. यूरोप की तरह तरह दक्षिण एशिया में वीजा-फ्री आवाजाही हो जाय तो भूख तथा अशिक्षा से जूझते ये मुल्क अरब-खरबों की बजट के सैनिक-तंत्र पर कटौती से जो धन बचायेंगे उससे मुल्कों की बेहतरी होगी, नफरत की सियासत टूटेगी तथा शस्त्र व्यापार से मालामाल होती साम्राज्यवादी शस्त्र क़रपोरेट कमजोर होगा तथा साम्राज्यवादी शिकंजा ढीला होगा। दुआ करता हूं इस नौटंकी के बाद मोदी पर बात पर पाकिस्तान-पाकिस्तान रटना बंद कर देंगे. अशिष्टता के लिए क्षमा, सर.
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