शुक्रिया अरुण जी. पिछले दिन कुछ अकारण से कारणों से गहन अवसाद की स्थिति में था. उस मनोदशा का चित्रण करते हुए लगा क्यों न टुकड़ों में आत्मकथा सा कुछ लिखूं. उसे संपादित करना बाकी था कि फेसबुक पर किसी ने दुर्गा भाभी की सचित्र जीवनी पोस्ट की तो उस पर कमेंट करते समय सोचा क्यों न उनसे मुलाकात की यादें लिख दूं. अवसाद भी कभी कभी सर्जनात्मक होता है, इसने एक कहानी की आइडिया दे दिया, शुरू कर चुका हूं, पूरी हो जायेगी तो अच्छी होनी चाहिय़े. शुरू कर दिया है.
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