खुर्शीद को याद करते हुयेः
मुझे भी याद रहेगी सदा सदा वो शाम
बहुत दिनों बाद मिले थे हम दोनों
गिला शिकवा की जगह मुलाक़ात के ख़लूस ने ले ली
करते थे हम फोन पर लगातार बात
नहीं खोलता था मगर वह अपनी तक़लीफ़ों का राज़
फ़ोंन किया जब 15 दिसंबर की रात
हुई थी नारीवाद पर उससे लंबी बात
निर्भया कांड की याद से था वह बहुत मायूस
निकालना था पहली बरसी पर उसे मशाल जुलूस
मर्दवाद-ओ-फ़िरकापरस्ती को ललकार रहा था खुर्शीद
साज़िश में खिलाफ़ उसके मशगूल थे कुछ नामुरीद
बौखला गये सभी कठमुल्ले देख उसके कलम का तेवर
घोंटने को हुये अातुर वे ये विद्रोही स्वर
घोबराता है ज़ालिम जब किसी विचार से
करता है विदा विचारक को संसार से
जानता नहीं ज़ालिम मगर यह राज़
मरकर विचारक हो जाता अौर खतरनाक
करहा था जब वह नारी-मुक्ति के विचारों का प्रचार
शाज़िश लगाया कमीनों ने तभी उस पर इल्ज़ाम-ए-बलात्कार
नहीं सह पाया वह यह बेहूदा बाकी बाद अारोप
छा गये दिल पे उसके ग़म के बादल घटाटोप
ले ली कमीनों ने एक दानिशमंद की जान
बनेंगे शब्द उसके मेहनतकश के अजान. (अौर नहीं लिखा जा रहा है ..... खुर होता तो पूछता अबे ये कविता है या वक्बतव्य अौर मैं कहता, मैं तो वक्तव्य देता हूं कभी गद्य में अौर कभी पद्य में, अब कोई ऐसा नहीं पूछता. सलाम खुर)
(ईमिः20.12.20014)
No comments:
Post a Comment