Saturday, December 20, 2014

खुर्शीद को याद करते हुयेः

खुर्शीद को याद करते हुयेः

मुझे भी याद रहेगी सदा सदा वो शाम
बहुत दिनों बाद मिले थे हम दोनों
गिला शिकवा की जगह मुलाक़ात के ख़लूस ने ले ली
करते थे हम फोन पर लगातार बात
नहीं खोलता था मगर वह अपनी तक़लीफ़ों का राज़
फ़ोंन किया जब 15 दिसंबर की रात
हुई थी नारीवाद पर उससे लंबी बात
निर्भया कांड की याद से था वह बहुत मायूस
निकालना था पहली बरसी पर उसे मशाल जुलूस
मर्दवाद-ओ-फ़िरकापरस्ती को ललकार रहा था खुर्शीद
साज़िश में खिलाफ़ उसके मशगूल थे कुछ नामुरीद
बौखला गये सभी कठमुल्ले देख उसके कलम का तेवर
घोंटने को हुये अातुर वे ये विद्रोही स्वर
 घोबराता है ज़ालिम जब किसी विचार से
करता है विदा विचारक को संसार से
जानता नहीं ज़ालिम मगर यह राज़
मरकर विचारक हो जाता अौर खतरनाक
 करहा था जब वह नारी-मुक्ति के विचारों का प्रचार
शाज़िश लगाया कमीनों ने तभी उस पर इल्ज़ाम-ए-बलात्कार
नहीं सह पाया वह यह बेहूदा  बाकी बाद अारोप
छा गये दिल पे उसके ग़म के बादल घटाटोप
ले ली कमीनों ने एक दानिशमंद की जान
बनेंगे शब्द उसके मेहनतकश के अजान. (अौर नहीं लिखा जा रहा है ..... खुर होता तो पूछता अबे ये कविता है या वक्बतव्य अौर मैं कहता, मैं तो वक्तव्य देता हूं कभी गद्य में अौर कभी पद्य में, अब कोई ऐसा नहीं पूछता. सलाम खुर)
(ईमिः20.12.20014)

No comments:

Post a Comment