Tribhuwan Singh किसी भाषा विज्ञानी से बात नहीं हो पायी लेकिन कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कुरु प्रदेश के लिये विराज्य का इस्तेमाल किया है, जहां तेरा-मेरा कुछ नहीं था न ही राज्य था. इससे जोडकर देखने पर वितर्क, तर्कहीनता होला चाहिये. इसलिये जाट अौर तेली वाली कहावत, अाप सही कह रहे हैं, कुतर्क की श्रेणी में अायेंगे अौर हवा में बिना किसी अाधार के कुछ भी बोल देना, वितर्क की, जैसे अग्रज, Ramadheen Singh जी की यह पोस्ट या ऊपर तमीज की सनद बांटने वाले अौर विदेशी गुलामी के फतवे वाले कमेंट, बिना सोचे-समझे जो मन में अाया बोल दिया. महाभारत महाकाव्य है जो मनुस्मृति के पहले लिखा गया, लेकिन 6ठीं शताब्दी कि पहले नहीं क्योंकि हमारे वैदिक पूर्वज ज्ञान की श्रुति परंपरा वाल् थे, उन्हें लिपि का ज्ञान नहीं था. लिपि ज्ञान ऋगवैदिक अार्यों के वंशजों में लिपि ज्ञान की शुरुअात, बुद्ध के समय के अास-पास हुई. अाध्यात्मिक अौर श्रृष्टिविषयक भौतिकतावादी(लोकायत-चारवाक परंपरा) दर्शन की परंपरा की प्रचुरता के बावजूद प्राचीन (वैदिक )दार्शनिक परम्पराओं में राजनैतिक दर्शन या राज्य के सिंद्धात का कोई वर्णन नहीं मिलता क्योंकि तब तक राज्य एक संस्था के रूप में पांव नहीं जमा सका था. 16 महाजनपदों के उदय के साथ, एक संस्था के रूप राज्य की अवधारणा पुख्ता हुयी अौर राज्य की उत्पत्ति अौर चरित्र का पहला ज़िक़्र, पाली में लिखे बौद्ध ग्रंथों -- "दीघनिकाय" अौर "अनुगत्तरानिकाय" में मिलता है. महाभारत काल इतिहास का वह कालखंड है जब वर्णाश्रम संस्थागत रूप ले रहा है अौर राज्य भी. कौटिल्य के समय तक कृष्ण अार्य नायक नहीं थे, भगवानत्व की तो बात ही छोड़िये. ब्रह्मा-विष्णु महेश का भी अस्तित्व नहीं था. कौटिल्य विजीगिशू (विजयाकांक्षी राजा) को सलाह देता है कि विजय अभियान पर निकलते हपये उसे सफलता के लिये देवताओं, ऋगवैदिक --अरुण, वरुण, इंद्र, अग्नि -- की अर्चना करनी चाहिये अौर विघ्न-बाधाओं से बचने के लिये दानवों की तथा कृष्ण अौर कंस को एकसाथ दानवों की कोटि में रखता है. कौटिल्य का ही समकालीन, यूनानी यात्री मेगस्थनीज भी कृष्ण को सूरसेन (मथुरा) क्षेत्र के एक नायक के रूप में चित्रित करता है. मनुस्मृति अौर महाभारत के शांतिपर्व में शासन संबंधी विचार मिलते-जुलते नहीं, एक ही हैं. गीता महाभारत पर प्रक्षेपण है जो खुद को खुदा घोषित करने वाले एक व्यक्ति का एकालाप है जिसके बहुत से श्लोक उनिषदों से चुराये हुये हैं. जो भी वेदों को सारे ज्ञान का श्रोत मानते हैं या महाभारत को इतिहास, या गीता को पवित्र ग्रंथ, मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि श्रुति ज्ञान के इन रणबांकुरों ने इन ग्रंथों के पन्ने भी नहीं पलटे हैं, नहीं तो अग्रज Ramadheen Singh से पूछ लीजिये.
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