हिंदी की महान लेखिका मैत्रेयि पुष्पा ने रायपुर में अपनी भागीदारी के अौचित्य में अालोचकों को गाली देते 1 पोस्ट डाला फेस्बुक पर ,आलोचना बर्दाश्त करने के साहस के अभाव में उन्होने मुझे ब्लाक कर दिया.
Maitreyi Pushpaधन्य हैं पतितपावन गंगा सरीखी मैत्रेयी जी! अादिवासी महिलाओं के रक्त से रंजित मन सिंह हाथ को पवित्र करने में मैत्रेयी पुष्पा जैसी नारीवादी को सम्मानित करने से बेहतर उपाय क्या हो सकती है? रक्तपिपाशु राजा अपनी घुड़साल में तरह-तरह के घोड़े-घोड़ियां रखने की शौक रखते हैं. बिकी हुई अावाज वही नहीं रहती उन्हीं शब्दों के बावजूद. श्रीमद् भागवत के प्रसाद चखने के बाद कुछ असर तो पड़ेगा ही. अापकी गलती नहीं है, सत्ता समीकरण बदलने के साथ प्रतिरोध के तमाम स्वर भागवतमय हो गये हैं. क्रातिकारिता कैरियर का अच्छा उपादान(पायदान) है.
Maitreyi Pushpa जी, गुस्ताखी मॉफ, अाप बहुत बड़ी हैं अौर मैं एक अदना सा ईमानदार इंसान. बचपन से ही अापकी ही तरह मेरी भी भषा बेलगाम रहीं है. अापके प्रति अतिरिक्त सम्मान का कारण भाषा पर लगाम गाने से अापका इंकार भी रहा है. पुष्पा जी छिपम-छिपाई का खेल हम भी नहीं खेलते, इसीलिये अापके प्रति भाषा थोड़ा बेलगाम हो गयी. अापने वहां क्या कहा, वह तो अाप ही जाने, अापकी "रचना के मुक्ति स्वर" ने जरूर बदल दिया होगा छत्तीसगढ़ की संघी सरकार की मर्दवादी सोच. बंद हो जाये शायद सोनी सोरियों पर अत्याचार अौर अादिवासी महिलाओं की हत्या-बलात्कार. पुष्पा जी, मुक्तिस्वर बरकरार होगा किंतु मुक्ति का मतलब शायद बदल गया हो. अाप कितनी भी खुशफहमी पालें कि अापने रायपुर में उनके मंच का इस्तेमाल कर मुक्तिगान प्रतिध्वनित किया, लेकिन हक़ीक़त यह है कि उन्होने अपनी वैधता के लिये वैसे ही अापका इस्मंतेमाल किया जैसे जयप्रकाश नारायण राजनैतिक दिगभ्रम में संघी संगठनों को "संपूर्ण क्रांति" का प्रमुख सहयोगी बनाकर हुये थे.. बाकी आप जैसे बड़े लोगों से सदा सीखने को अातुर बहुत छोटा इंसान हूं. गुस्ताखी दुबारा म़ॉफ हो, लेकिन अपना सरोकार जरूर शेयर करूंगा कि यदि अाप जैसों की कलम की धार कुंद हुई तो हिंदी साहित्य अौर नारीवादी प्रज्ञा तथा दावेदारी के जारी अभियान का ही नहीं, मानवता का बड़ा नुक्सान होगा क्योकि अापका स्वर विद्रोह के विरले चंद द्वीपों में है. सादर.
Maitreyi Pushpaअाप पता नहीं किन लोगों की बात कर रही हैं किस तंबू की बात कर रही हैं, मैं एक व्यक्ति हूं अौर उसी नाते मुझे जो लगा कह दिया. तंबू तो तानाशाह तानता है जहां से अाप हो अायीं. डैनियल बेल ने विचारधारा के अंत का नारा यथास्थिति के पक्ष में तर्कहीनता के कुतर्क लके रूप में दिया था. कई "बड़े" लोगों को तब समझौता करते देखा जब पाने को कुछ नहीं, खोने को बहुत कुछ. धृष्टता के लिये क्षमा.
Maitreyi Pushpa हम अाप को सलाह नहीं दे रहे हैं, हत्यारी सरकार के हाथों कलम बेचने के अाप के कृत्य पर बेबाक राय दे रहे हैं. लेखन हमा री तो नहीं, अापकी बपौती होगी. हां अापके लेखन का कायल न होता तो सत्ता के गलियारों की ललक में अापके रायपुरी साहित्यविहार पर पीडा न होती. हमें अपनी अौकात मालुम है, अापने अपनी अौकात भी दिखा दी. जाहिर है अापकी मित्रसूची से बाहर हो गया हूंगा. अालोचना बर्दाश्त करने के लिये साहस की अावश्यकता होती है, फासीवादी सत्ता को अंतरात्मा गिरवी रख चुके लोगों का साहस चुक जाता है. अाश्चर्य तब होता जब अाप ऐसा न करतीं.
Maitreyi Pushpaधन्य हैं पतितपावन गंगा सरीखी मैत्रेयी जी! अादिवासी महिलाओं के रक्त से रंजित मन सिंह हाथ को पवित्र करने में मैत्रेयी पुष्पा जैसी नारीवादी को सम्मानित करने से बेहतर उपाय क्या हो सकती है? रक्तपिपाशु राजा अपनी घुड़साल में तरह-तरह के घोड़े-घोड़ियां रखने की शौक रखते हैं. बिकी हुई अावाज वही नहीं रहती उन्हीं शब्दों के बावजूद. श्रीमद् भागवत के प्रसाद चखने के बाद कुछ असर तो पड़ेगा ही. अापकी गलती नहीं है, सत्ता समीकरण बदलने के साथ प्रतिरोध के तमाम स्वर भागवतमय हो गये हैं. क्रातिकारिता कैरियर का अच्छा उपादान(पायदान) है.
Maitreyi Pushpa जी, गुस्ताखी मॉफ, अाप बहुत बड़ी हैं अौर मैं एक अदना सा ईमानदार इंसान. बचपन से ही अापकी ही तरह मेरी भी भषा बेलगाम रहीं है. अापके प्रति अतिरिक्त सम्मान का कारण भाषा पर लगाम गाने से अापका इंकार भी रहा है. पुष्पा जी छिपम-छिपाई का खेल हम भी नहीं खेलते, इसीलिये अापके प्रति भाषा थोड़ा बेलगाम हो गयी. अापने वहां क्या कहा, वह तो अाप ही जाने, अापकी "रचना के मुक्ति स्वर" ने जरूर बदल दिया होगा छत्तीसगढ़ की संघी सरकार की मर्दवादी सोच. बंद हो जाये शायद सोनी सोरियों पर अत्याचार अौर अादिवासी महिलाओं की हत्या-बलात्कार. पुष्पा जी, मुक्तिस्वर बरकरार होगा किंतु मुक्ति का मतलब शायद बदल गया हो. अाप कितनी भी खुशफहमी पालें कि अापने रायपुर में उनके मंच का इस्तेमाल कर मुक्तिगान प्रतिध्वनित किया, लेकिन हक़ीक़त यह है कि उन्होने अपनी वैधता के लिये वैसे ही अापका इस्मंतेमाल किया जैसे जयप्रकाश नारायण राजनैतिक दिगभ्रम में संघी संगठनों को "संपूर्ण क्रांति" का प्रमुख सहयोगी बनाकर हुये थे.. बाकी आप जैसे बड़े लोगों से सदा सीखने को अातुर बहुत छोटा इंसान हूं. गुस्ताखी दुबारा म़ॉफ हो, लेकिन अपना सरोकार जरूर शेयर करूंगा कि यदि अाप जैसों की कलम की धार कुंद हुई तो हिंदी साहित्य अौर नारीवादी प्रज्ञा तथा दावेदारी के जारी अभियान का ही नहीं, मानवता का बड़ा नुक्सान होगा क्योकि अापका स्वर विद्रोह के विरले चंद द्वीपों में है. सादर.
Maitreyi Pushpaअाप पता नहीं किन लोगों की बात कर रही हैं किस तंबू की बात कर रही हैं, मैं एक व्यक्ति हूं अौर उसी नाते मुझे जो लगा कह दिया. तंबू तो तानाशाह तानता है जहां से अाप हो अायीं. डैनियल बेल ने विचारधारा के अंत का नारा यथास्थिति के पक्ष में तर्कहीनता के कुतर्क लके रूप में दिया था. कई "बड़े" लोगों को तब समझौता करते देखा जब पाने को कुछ नहीं, खोने को बहुत कुछ. धृष्टता के लिये क्षमा.
Maitreyi Pushpa हम अाप को सलाह नहीं दे रहे हैं, हत्यारी सरकार के हाथों कलम बेचने के अाप के कृत्य पर बेबाक राय दे रहे हैं. लेखन हमा री तो नहीं, अापकी बपौती होगी. हां अापके लेखन का कायल न होता तो सत्ता के गलियारों की ललक में अापके रायपुरी साहित्यविहार पर पीडा न होती. हमें अपनी अौकात मालुम है, अापने अपनी अौकात भी दिखा दी. जाहिर है अापकी मित्रसूची से बाहर हो गया हूंगा. अालोचना बर्दाश्त करने के लिये साहस की अावश्यकता होती है, फासीवादी सत्ता को अंतरात्मा गिरवी रख चुके लोगों का साहस चुक जाता है. अाश्चर्य तब होता जब अाप ऐसा न करतीं.
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